केजरीवाल के इन रूपों से अनजान होंगे आप!
|दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को दुनिया आज आम आदमी पार्टी के नेता और उसके राष्ट्रीय संयोजक के रूप में जानती है। राजनीति में आने से पहले उनकी पहचान आंदोलनकारी और आरटीआई ऐक्टिविस्ट के रूप में रही है।
इन सबसे अलग उनकी कुछ और पहचान भी है जिनसे लोग वाकिफ नहीं है या बहुत कम लोगों को इसकी जानकारी है। 16 अगस्त को अरविंद केजरीवाल के जन्मदिन पर उनके कुछ ऐसे ही रूपों से रूबरू करा रहे हैं भागीरथ:
एंकर के रूप में
अरविंद केजरीवाल एक जमाने में न्यूज एंकर की भूमिका भी अदा करते थे। जिस प्रोग्राम की वह एंकरिंग करते थे उसका नाम था फाइट फॉर योर राइट। अंग्रेजी चैनल एनडीटीवी मेट्रो नेशन पर आने वाला यह प्रोग्राम हिंदी में था। इस प्रोग्राम की ऐंकरिंग के लिए दिल्ली के डेप्युटी सीएम मनीष सिसोदिया ने केजरीवाल को ट्रेनिंग दी थी। दरअसल, मनीष सिसोदिया भी पहले न्यूज एंकर थे।
अरविंद केजरीवाल की ऐंकरिंग और उनके तीखे सवालों की वजह से यह कार्यक्रम इतना हिट हुआ कि इसका प्रसारण एनडीटीवी के मेनस्ट्रीम चैनल एनडीटीवी इंडिया पर किया जाने लगा। कार्यक्रम की टीआरपी की वजह से यह कदम उठाया गया। फाइट फॉर योर राइट प्रोग्राम टॉक शो था। इनमें पब्लिक से जुड़े मुद्दों पर जनप्रतिनिधियों से सवाल जवाब किया जाता था। इस कार्यक्रम को देखने अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल भी अक्सर पहुंचती थीं।
लेखक के रूप
बहुत कम लोगों को पता है कि अरविंद केजरीवाल राइटर भी हैं। उनकी किताब स्वराज बेस्ट सेलर बन चुकी है। इस किताब में अरविंद केजरीवाल ने स्वराज के अनुभवों को विस्तार से लिखा है। किताब लिखने से पहले अरविंद ने भारत के उन तमाम गांवों की यात्रा की जो आदर्श विलेज बन चुके हैं और वहां स्वराज की अवधारणा सफलतापूर्वक फल-फूल रही है।
ऐसा ही एक गांव है हिवरे बाजार। इस गांव पर केजरीवाल फिदा से हो गए हैं। महात्मा गांधी ने जिस स्वराज की कल्पना की थी, वह इस गांव में देखी जा सकती है। अरविंद केजरीवाल ने अपनी किताब के माध्यम से बताया कि किस तरह तमाम समस्याओं को स्वराज के जरिए खत्म किया जा सकता है। केजरीवाल ने ब्राजील और स्विट्जरलैंड के भी उदाहरण देकर बताया कि वहां किस तरह स्वराज सफल हो रहा है।
गांव हिवरे बाजार
स्वराज के पहले प्रयोग
अरविंद केजरीवाल जब सक्रिय राजनीति में नहीं थे, तब उन्होंने लोकराज आंदोलन के जरिए दिल्ली में स्वराज के प्रयोग किए थे। दिल्ली के कल्याणपुरी और सोनिया विहार में इसकी शुरुआत की गई थी। दोनों जगह बीजेपी पार्षद के सहयोग से मोहल्ला सभा की बैठकें की गईं। 2008 में सोनिया विहार की बीजेपी पार्षद अन्नपूर्णा मिश्रा ने मोहल्ला सभा में काफी दिलचस्पी दिखाई। इसी दौरान उनके बेटे कपिल मिश्रा की केजरीवाल से नजदीकी हुई।
मोहल्ला सभा की बैठक में मनीष सिसोदिया
मोहल्ला सभा की बैठकें पार्षद और जनता के बीच कराई जाती थीं। इन बैठकों में जनता अपनी समस्याएं लेकर आती थी। मुहल्ला सभा की बैठक में पार्षद पब्लिक की समस्याओं पर जवाब देते थे। और अगली सभा में बताते थे कि उस पर कितना काम हुआ है। पार्षद के सभी काम इन मोहल्ला सभा की बैठक में तय किए जाते थे। उन्हें अगली मीटिंग्स में पिछली मीटिंग में तय किए गए कामों का स्टेटस बताना होता था।
डेसू के दफ्तर बाहर बैठते थे मनीष के साथ
बात 2003 की है। उस वक्त दिल्ली में बिजली का निजीकरण नहीं हुआ था। अरविंद केजरीवाल भारतीय राजस्व सेवा में अधिकारी के पद पर थे। लक्ष्मी नगर में डेसू का एक दफ्तर था जहां लोग अपनी समस्याएं लेकर आते थे। ज्यादातर समस्याएं बिजली के बढ़े बिलों को लेकर होती थीं। केजरीवाल इसी दफ्तर के बाहर टेबल कुर्सी में मनीष सिसोदिया के साथ बैठते थे। उनकी टेबल पर तख्ती लगी होती थी कि अगर कोई आपसे रिश्वत मांग रहा है तो हमसे संपर्क करें। अपने पास आने वाले लोगों की वह बिजली के बिलों की समस्याओं को दूर करने में मदद करते थे।
मनीष के साथ लोगों को एकजुट करते अरविंद केजरीवाल
पुरस्कारों से सेल्समैन
भारतीय राजस्व सेवा में काम के दौरान अरविंद और उनकी पत्नी सुनीता को कई गिफ्ट मिलते थे। अरविंद अपनी पत्नी सुनीता के साथ फुटपाथ पर इन गिफ्ट को लेकर बैठ जाते थे और उन्हें बेच दिया करते थे। इन गिफ्ट से मिलने वाले पैसों का इस्तेमाल वह जरूरतमंदों की मदद करने में करते थे। इसके अलावा मैग्सेसे अवॉर्ड मिलने पर जो पैसा उन्हें मिला, उसका इस्तेमाल उन्होंने लोगों को कानूनी मदद देने में किया। इस काम के लिए उन्होंने पीसीआरएफ (पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन) संस्था बनाई।
आरटीआई अवॉर्ड
अरविंद केजरीवाल की संस्था पीसीआरएफ ने सूचना के अधिकार का बेहतर इस्तेमाल करने पर दो साल आरटीआई अवॉर्ड भी दिए। आरटीआई अवॉर्ड की ज्यूरी में उन्होंने देश के प्रतिष्ठित लोगों को शामिल किया। इनमें आमिर खान, नारायण मूर्ति, जस्टिस जेएस वर्मा, जेएम लिंग्दोह, फली एस नारीमन, पुलेला गोपीचंद जैसी शख्सियतें शामिल थीं।
यह अवॉर्ड सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने वाली पब्लिक के अलावा बेस्ट पीआईओ (लोक सूचना अधिकारी) और पत्रकार को भी दिए गए। पुरस्कार की राशि दो लाख रुपये रखी गई थी। आरटीआई के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के लिए 2009 और 2010 में पीसीआरएफ ने ये अवॉर्ड दिए।
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