केजरीवाल का बवाल बेकार, कोर्ट ने LG को दिए अधिकार
| कोर्ट ने इसके साथ ही केंद्र सरकार से पूछा है कि वह बताए कि दिल्ली में इससे पहले सरकार कैसे चलती है और बाकी केंद्र शासित राज्यों में क्या व्यवस्था है। हाई कोर्ट इस मामले पर अगली सुनवाई बाद में करेगा। हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को पिछले एक हफ्ते के दौरान की गई अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग की जानकारी एलजी को देनी होगी। एलजी इस पर अंतिम फैसला लेंगे। खबर पढ़ेंः केजरीवाल सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया नोटिस इस तरह केंद्र के साथ अधिकार की जंग में उलझी केजरीवाल सरकार को एक दिन में यह दूसरा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने सुबह केंद्र के नोटिफिकेशन को ‘संदिग्ध’ बताने वाली हाई कोर्ट की टिप्पणी को आधारहीन करार देते हुए निष्प्रभावी कर दिया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब देने के लिए भी कहा है। क्या थी दिल्ली सरकार की याचिका एलजी द्वारा कार्यवाहक चीफ सेक्रटरी की नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए याचिका में कहा गया था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में दो तरह की अथॉरिटी नहीं हो सकती। ऐसा नहीं हो सकता कि अफसर एलजी और सीएम दोनों को रिपोर्ट करें। एलजी को किसी राज्य के राज्यपाल से ज्यादा अधिकार नहीं दिए जा सकते। दिल्ली सरकार ने कहा कि 21 मई के नोटिफिकेशन को खारिज किया जाना चाहिए क्योंकि ये दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र में दखल है। इससे लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार के लिए काम करना मुश्किल हो गया है। याचिका में दिल्ली सरकार के एंटी करप्शन ब्रांच का दायरा राज्य सरकार के अफसरों तक सीमित करने वाले 23 जुलाई 2014 के नोटिफिकेशन को भी चुनौती दी गई। कहा गया कि जो मामले दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, उनमें केंद्र अपनी इग्जेक्यूटिव पावर का इस्तेमाल नहीं कर सकता।
केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन के खिलाफ हाई कोर्ट गए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को बड़ा झटका लगा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए दिल्ली सरकार से कहा है कि वह अपने सभी फैसलों की जानकारी उप राज्यपाल को दे। इस तरह से कोर्ट ने फिलहाल दिल्ली सरकार के फैसलों पर उप राज्यपाल को अंतिम निर्णय का अधिकार दे दिया है।
दिल्ली में कानून व्यवस्था, पुलिस, जमीन और सेवाओं से संबंधित मामलों पर एलजी को पूर्ण अधिकार देने वाले नोटिफिकेशन का विरोध करते हुए दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसें कई तर्क दिए गए थे। कहा गया कि सर्विस मैटर्स को संविधान संशोधन किए बिना ही स्टेट लिस्ट से हटा दिया गया है।
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