कानपुर: हर साल विजयादशमी पर यहां होती है रावण की पूजा
|नवरात्रि के दौरान देश में बड़ी संख्या में राम लीलाएं आयोजित होती हैं। यहां ‘भगवान राम की जय’ के नारे लगते हैं और दशहरे के दिन रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतले जलाए जाते हैं। इस परंपरा से अलग कानपुर का एक हिस्सा ऐसा भी हैं जहां की रीत अलग है। यहां ‘जय लंकेश’ और ‘लंकापति रावण की जय हो’ की गूंज सुनाई देती है। दशानन मंदर में लोग रावण की पूजा करते हैं और उससे आशीर्वाद मांगते हैं।
यह मंदिर करीब डेढ़ सौ साल पुराना है। मंदिर के पट साल में बस एक बार, विजयादशमी की सुबह खुलते हैं। भक्तों का हुजूम मंदिर के बाहर जमा होता है और रावण की पूजा करता है। पट खुलने के कुछ ही मिनटों के अंदर पूरा मंदिर परिसर भक्तों की भीड़ से भर जाता है। शाम को जब बाकी सभी जगहों की तरह कानपुर के भी बाकी हिस्सों में रावण के पुतलों के जलने से आसमान धधकता है, उस समय मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद ये पट अगले दशहरा को ही खुलेंगे।
दशानन मंदिर में रावण की 5 फुट ऊंची प्रतिमा लगी है। इसे स्थानीय राजा महाराजा शिव शंकर ने छिन्नमस्तरा मंदिर परिसर में बनवाया था। शहर के शिवाला इलाके में स्थित कैलाश मंदिर के पास ही यह मंदिर है। मान्यता है कि रावण मां छिन्नमस्तका का ‘चौकीदार’ है। विजयादशमी के दिन छिन्नमस्तका मंदिर में आने वाले भक्त रावण की भी पूजा करते हैं। मान्यता है कि रावण खुद महादेव का बहुत बड़ा भक्त था। शायद इसीलिए उसका मंदिर भी शिव के कैलाश मंदिर के पास बना हुआ है।
इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ें: A temple where demon king has his day
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