कहानी सियासी फिल्मों की:राज बब्बर की फिल्म को इंदिरा ने बैन किया, संजय गांधी को जेल जाना पड़ा; ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ पर रोक लगी
|फिल्मों का सियासत से बहुत गहरा और पुराना नाता रहा है। सत्तर के दशक में फिल्मों ने दिल्ली की सत्ता हिला दी। सरकार को कई फिल्में बैन करनी पड़ीं। एक फिल्म के लिए तो सरकार और फिल्ममेकर्स के बीच ऐसी ठनी कि संजय गांधी को जेल तक जाना पड़ा। 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ रिलीज होनी थी, लेकिन विपक्ष ने विरोध जताया तो ऐन मौके पर चुनाव आयोग ने रोक लगा दी। 2024 लोकसभा चुनाव में भी कुछ फिल्में सुर्खियां बटोर रही हैं, जिसे विपक्ष सरकार का प्रोपेगैंडा बता रहा है। आज बात उन 8 फिल्मों की, जिन पर जमकर पॉलिटिकल कंट्रोवर्सी हुई। साथ ही एक्सपर्ट के जरिए यह भी जानेंगे कि सियासत से जुड़ी फिल्मों की वजह से चुनाव के नतीजों पर कितना असर पड़ता है… 1. किस्सा कुर्सी का : इमरजेंसी के दौरान फिल्म पर बैन लगा, सभी प्रिंट जलाए गए साल 1975, एक फिल्म बनी ‘किस्सा कुर्सी का’। डायरेक्टर अमृत नाहटा की इस फिल्म में राज बब्बर ने लीड रोल प्ले किया था। फिल्म में इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ के नारे, नसबंदी योजना और अनाज खाने वाले चूहे को मारने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान का जिक्र था। इसमें गंगाराम की पार्टी का चुनाव चिह्न कार दिखाया गया था, जो संजय गांधी की मारुति परियोजना के बारे में थी। इमरजेंसी के दौरान सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया। सेंसर बोर्ड ऑफिस से फिल्म के सभी प्रिंट उठाकर गुड़गांव (अब गुरुग्राम) की मारुति फैक्ट्री में जला दिए गए। संजय गांधी को जाना पड़ा तिहाड़ जेल 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी। इंदिरा गांधी सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्री वीसी शुक्ला पर आरोप लगा कि उन्होंने फिल्म के प्रिंट मुंबई से मंगवाकर गुड़गांव में जलवाए। संजय गांधी को फिल्म के प्रिंट नष्ट करने का दोषी माना गया। इसको लेकर मुकदमा दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में चला। संजय गांधी पर गवाहों पर दबाव बनाने का भी आरोप लगा। सुप्रीम कोर्ट ने संजय गांधी की जमानत रद्द करते हुए उन्हें एक महीने के लिए तिहाड़ जेल भेज दिया। दो बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी से सांसद रहे थे फिल्म डायरेक्टर फिल्म डायरेक्टर अमृत नाहटा दो बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी से सांसद रहे। वे 1962 में कांग्रेस में शामिल हुए और 1967 में बाड़मेर सीट से लोकसभा सांसद बने। इसी सीट पर वे 1971 में फिर से सांसद चुने गए। तब उन्होंने राजस्थान के दिग्गज नेता भैरोंसिंह शेखावत को हराया था। अमृत नाहटा 1977 के चुनाव में कांग्रेस छोड़कर जनता पार्टी में आ गए। इसके बाद वे पाली से लोकसभा सांसद बने। 2. आंधी : इंदिरा गांधी और उनके पति के बीच अनबन को दिखाया साल 1975, राइटर-डायरेक्टर गुलजार की फिल्म ‘आंधी’ भी सियासी गलियारों में खूब चर्चा में रही। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि फिल्म तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पति फिरोज गांधी के रिश्तों पर बनी है। इस फिल्म में संजीव कुमार और सुचित्रा सेन लीड रोल में थे। फिल्म की कहानी में सुचित्रा सेन, गुपचुप तरीके से संजीव कुमार से शादी कर लेती हैं। बाद में आपसी कलह की वजह से वो पति और बच्चे को छोड़कर चली जाती हैं और एक कामयाब नेता बन जाती हैं। कई सालों के बाद उनकी मुलाकात वापस अपने पति से होती है। दोनों छुपकर मिलते हैं, लेकिन उनकी तस्वीरें वायरल हो जाती हैं। विपक्ष, सुचित्रा की छवि धूमिल करने की कोशिश करता है। इसके बाद वो रैली में जाकर कहती हैं- ‘देश की सेवा के लिए उन्होंने अपने पति और बच्चे को छोड़ दिया था।’ फिल्म के अंत में सुचित्रा को चुनाव जीतते हुए दिखाया जाता है। इमरजेंसी के दौरान सरकार ने फिल्म के रिलीज होने के कुछ ही महीनों बाद इस पर बैन लगा दिया। हालांकि 1977 में कांग्रेस की हार के बाद जनता पार्टी की सरकार ने फिल्म पर से बैन हटा दिया था। यह फिल्म दूरदर्शन पर दिखाई गई थी। 3. राजनीति : कटरीना कैफ को सोनिया गांधी के लुक में दिखाया गया साल 2010, डायरेक्टर प्रकाश झा की फिल्म ‘राजनीति’ को सेंसर बोर्ड ने रिजेक्ट कर दिया। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि फिल्म के किरदार नेताओं के निजी जिंदगी से लिए गए थे। फिल्म में कटरीना कैफ के किरदार को सोनिया गांधी से जोड़कर देखा गया। एक इंटरव्यू के दौरान इस फिल्म को लेकर प्रकाश झा ने कहा था, ‘फिल्म को रिलीज कराने के लिए कई सारे पापड़ बेलने पड़े थे। सबसे बड़ी अड़चन कांग्रेस पार्टी ने खड़ी की थी। उन्हें लगा कि कटरीना कैफ का किरदार सोनिया गांधी पर आधारित है। कांग्रेस पार्टी के कुछ सदस्य फिल्म की सेंसर बोर्ड स्क्रीनिंग में आए। उन्होंने फिल्म रिजेक्ट कर दी और हमें सर्टिफिकेट नहीं दिया गया। इसके बाद मैंने ट्रिब्यूनल का रुख किया, तब जाकर मुझे सेंसर सर्टिफिकेट दिया गया।’ 4. पीएम नरेंद्र मोदी : 2019 लोकसभा चुनाव से पहले रिलीज होने वाली थी, चुनाव आयोग ने रोक लगाई साल 2019, लोकसभा चुनावों के ठीक पहले फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ रिलीज होने वाली थी। इसमें नरेंद्र मोदी के राजनीति में आने से लेकर गुजरात के सीएम और फिर प्रधानमंत्री बनने तक के सफर को दिखाया गया था। ओमंग कुमार के डायरेक्शन में बनी इस फिल्म में मोदी का किरदार विवेक ओबरॉय ने निभाया। कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि वोटर्स को प्रभावित करने के लिए चुनाव से ठीक पहले फिल्म रिलीज की जा रही है। यह आचार संहिता का उल्लंघन है। इसके बाद चुनाव आयोग ने फिल्म पर रोक लगा दी। लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद 24 मई 2019 को फिल्म रिलीज हुई। 5. ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर : मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में दिखाया साल 2019, एक फिल्म रिलीज हुई ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’। यह फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रह चुके संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ पर आधारित थी। मनमोहन सिंह का किरदार अनुपम खेर और संजय बारू का किरदार अक्षय खन्ना ने निभाया था। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि फिल्म में मनमोहन सिंह को एक कमजोर और कठपुतली प्रधानमंत्री के रूप में दिखाया गया। वे सारे फैसले सोनिया गांधी से पूछकर लेते हैं। इस पर कांग्रेस ने आपत्ति जताई थी। फिल्म की टाइमिंग को लेकर भी कांग्रेस ने सवाल उठाया कि इसे 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रिलीज किया जा रहा है। महाराष्ट्र यूथ कांग्रेस ने फिल्म के प्रोड्यूसर को पत्र लिखकर रिलीज से पहले उन्हें फिल्म दिखाने की मांग की थी। यूथ कांग्रेस अध्यक्ष सत्यजीत तांबे ने कहा था कि फिल्म से विवादित सीन नहीं हटाए गए, तो यूथ कांग्रेस देश में कहीं भी फिल्म का प्रदर्शन नहीं होने देगी। 6. मैं अटल हूं : विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह सरकार की प्रोपेगैंडा फिल्म है साल 2024, पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक ‘मैं अटल हूं’ रिलीज हुई। इसमें अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने अटल बिहारी वाजपेयी का रोल प्ले किया है। फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन से लेकर उनकी कॉलेज लाइफ, आरएसएस से जुड़ाव, राजनीति में प्रवेश और प्रधानमंत्री के रूप में उनके योगदान, जैसे पोखरण टेस्ट, लाहौर बस यात्रा, कारगिल विजय जैसी अहम घटनाओं को दिखाया गया है। फिल्म में नेहरू का निधन, इंदिरा गांधी का प्रधानमंत्री बनना, इमरजेंसी और ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौर को भी दिखाया गया है। कुछ लोगों ने इस फिल्म को लेकर आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के पक्ष में प्रोपेगैंडा फैलाने के लिए यह फिल्म रिलीज हुई। इस पर पंकज त्रिपाठी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया, ‘यह फिल्म किसी प्रोपेगैंडा का हिस्सा नहीं है। यह फिल्म अटल जी के जीवन की कहानी और आजादी के बाद से भारत की यात्रा है।’ 7. आर्टिकल 370 : विपक्ष का आरोप- लोकसभा चुनाव से पहले वोटर्स को लुभाने का प्रोपेगैंडा साल 2024, लोकसभा चुनावों की घोषणा से करीब एक महीने पहले एक फिल्म रिलीज हुई ‘आर्टिकल 370’। इसमें केंद्र सरकार के 2019 में जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को हटाने और उसकी स्ट्रैटजी को दिखाया गया है। इसमें लोकसभा और राज्यसभा की उन घटनाओं का भी जिक्र किया गया है, जो 2019 में इस आर्टिकल को खत्म करने की चर्चा के दौरान हुई थीं। विपक्ष ने इस फिल्म को भी प्रोपेगैंडा फिल्म करार दिया। विपक्षी पार्टियों का कहना था कि राजनीतिक लाभ के लिए फिल्म को लोकसभा चुनाव के पहले रिलीज किया गया। फिल्म को लेकर प्रोड्यूसर आदित्य धर ने कहा था, ‘इंडियन ऑडियंस बहुत स्मार्ट है। उन्हें पता है कि कौन सी फिल्म प्रोपेगैंडा वाली है और कौन सी नहीं। मौजूदा सरकार को चुनाव जीतने के लिए किसी फिल्म के सपोर्ट की जरूरत नहीं है। फिल्म की कहानी कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने पर बेस्ड है।’ 8. स्वातंत्र्य वीर सावरकर साल 2024, 22 मार्च को विनायक दामोदर सावरकर के जीवन पर आधारित फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ रिलीज हुई। चुनावी माहौल के बीच रिलीज हुई इस फिल्म को विपक्षी पार्टियों ने सरकार का प्रोपेगैंडा बताया। इस पर फिल्म के एक्टर और प्रोड्यूसर रणदीप हुड्डा ने कहा था- ‘यह एंटी प्रोपेगैंडा फिल्म है, जो वीर सावरकर के खिलाफ दुष्प्रचार चल रहा है, उसको तोड़ेगी। मैंने घर बेचकर यह फिल्म बनाई है। जिस पार्टी से लोग इस फिल्म को जोड़ रहे हैं, उसे चुनाव जीतने के लिए मेरी फिल्म की जरूरत नहीं है।’ लोकसभा चुनाव के बाद कंगना की फिल्म रिलीज होगी कंगना रनोट की फिल्म ‘इमरजेंसी’ पहले पिछले साल 24 नवंबर 2023 को रिलीज होने वाली थी, लेकिन बैक टु बैक बड़ी फिल्मों के रिलीज की वजह से कंगना ने इस फिल्म को 2024 में रिलीज करने का फैसला किया। इस फिल्म में कंगना ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की भूमिका निभाई है। अब यह फिल्म 14 जून 2024 को रिलीज होगी। हालांकि इस फिल्म को पहले रिलीज करने की चर्चा थी, पर आचार संहिता की वजह से फिल्ममेकर्स ने इसकी तारीख बढ़ा दी। फिलहाल कंगना रनोट बीजेपी के टिकट पर हिमाचल प्रदेश के मंडी से लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं। राजनीति पर बनी फिल्मों पर क्रिटिक्स की क्या राय है, आइए जानते हैं ….. मुंबइया सिनेमा को पॉलिटिकल फिल्मों की कितनी समझ है? फिल्म क्रिटिक्स अजीत राय कहते हैं- ‘पिछले सौ सालों में 2-3 से ज्यादा अच्छी फिल्में नहीं बनी हैं। पॉलिटिकल फिल्मों का दुर्भाग्य यह है कि हमारे हिंदी सिनेमा में एक सब इंस्पेक्टर, मुख्यमंत्री को पीट देता है। राजनीति की समझ ना रखने वाले लोग अमिताभ बच्चन को लेकर ‘इंकलाब’ जैसी फिल्म बनाते हैं, जो पूरी विधानसभा को गोलियों से भून देता है। शूल जैसी फिल्म में मनोज बाजपेयी विधान भवन में जाकर विधायक को मार देते हैं। ऐसा रियल जिंदगी में नहीं होता है और आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।’ फिल्म से किसी भी राजनीतिक दल को फायदा नहीं हो सकता फिल्म क्रिटिक अजीत राय कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता है कि किसी भी पॉलिटिकल पार्टी के पास इतना समय है कि अपने लिए फिल्म बनवाए। उनके लिए सिनेमा सिर्फ नाचने-गाने और महज भीड़ इकट्ठा करने का एक साधन है। कोई फिल्म किसी को वोट दिलवा सकती है, ये सोचना भी मूर्खता होगी।’ राजनीतिक मुद्दे पर फिल्में बनाने वालों को असल में राजनीति की कितनी समझ? फिल्म क्रिटिक तरण आदर्श कहते हैं, ‘जहां तक मैं समझता हूं, थोड़ी बहुत जानकारी तो होती है। बिना रिसर्च के फिल्म नहीं बन सकती है, लेकिन रिसर्च कहां तक सच और कहां तक झूठ है, इसका जवाब तो वही दे सकते हैं।’ कंट्रोवर्सी के बाद ऐसी फिल्मों के प्रति दर्शकों का रवैया क्या होता है? फिल्मों के कंट्रोवर्सी पर फिल्म क्रिटिक तरण आदर्श कहते हैं, ‘एक बात तो तय है कि जब कंट्रोवर्सी होती है तो वह फिल्म सुर्खियों में आ जाती है। यह देखने के लिए उत्सुकता बन जाती है कि क्या वाकई में ऐसा हुआ था या नहीं हुआ था?’ सेंसर बोर्ड में बैठे अधिकारियों को ऐसी फिल्मों की कितनी समझ होती है? तरण आदर्श कहते हैं, ‘किसी भी फिल्म को देखने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण पैनल बैठता है। सेंसर की कमेटी जो वहां बैठी होती है, उसे ही हम एग्जामिन कमेटी और रिवाइजिंग कमेटी भी कहते हैं। किन-किन मेंबर ने फिल्म देखी है, उनके सेंसर सर्टिफिकेट में नाम होते हैं। इसके अलावा सर्टिफिकेट पर रीजनल ऑफिसर के सिग्नेचर भी होते हैं। उन्हें फिल्म से जुड़ी पूरी जानकारी होती है। प्रोपेगैंडा फिल्मों का कितना रोल है? तरण आदर्श कहते हैं, ‘यह बात तो है कि कई फिल्में प्रोपेगैंडा के तहत आती हैं। मैं यह बात कहना चाहूंगा कि लोग बहुत ही स्मार्ट हैं। पहले से ही पोस्टर, टीजर और ट्रेलर देखकर मन बना लेते हैं कि उन्हें वो फिल्म देखनी है या नहीं देखनी है, लेकिन फिल्म की इतनी अच्छी रिपोर्ट आती है कि फिल्म देखने चले जाते हैं।’