कभी ऑस्ट्रेलिया में टैक्सी चलाते थे रणदीप:डिप्रेशन में खुद को कमरे में बंद कर लेते थे, स्वातंत्र्य वीर सावरकर के लिए बेचनी पड़ी प्रॉपर्टी
|आज की स्ट्रगल स्टोरी में कहानी है एक्टर रणदीप हुड्डा की। रणदीप लंबे वक्त से फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ की वजह से चर्चा में बने हुए हैं। हालांकि इस फिल्म को अंजाम तक पहुंचाने के लिए उन्हें बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा। वीर सावरकर के रोल में ढलने के लिए उन्होंने 32 किलो वजन कम किया था। इस फिल्म की मेकिंग के दौरान उन्हें मुंबई स्थित अपनी प्रॉपर्टी तक बेचनी पड़ी। एक वक्त ऐसा भी आया कि फिल्म बंद करने की नौबत आ गई। लेकिन उन्होंने अपनी सूझबूझ से ऐसा होने नहीं दिया। 2018 में वे फिल्म बैटल ऑफ सारागढ़ी में कास्ट हुए थे, लेकिन वो बन न सकी। इस कारण वे डिप्रेशन में चले गए। इस वक्त परिवार वालों को डर बना रहता था कि वे कहीं खुद के साथ कुछ गलत ना कर लें। ये सारी बातें खुद रणदीप ने हमें मुंबई के आराम नगर स्थित अपने ऑफिस में बैठकर बताईं। उनके चेहरे पर फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ की सफलता की खुशी दिख रही थी। थोड़ी औपचारिकता के बाद हमारी बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। पढ़िए रणदीप हुड्डा के संघर्ष की कहानी, उन्हीं की जुबानी बचपन कैसा बीता? जवाब में रणदीप ने कहा- एक सामान्य बच्चे की तरह मेरा भी बचपन बीता। हालांकि कभी यह नहीं सोचा था कि एक्टर बनूंगा। दूर-दूर तक मन में इसकी चाहत नहीं थी। मेरी स्कूलिंग हरियाणा के मोतीलाल नेहरू स्कूल ऑफ स्पोर्ट्स से हुई थी। शुरुआत में स्पोर्ट्स में बहुत दिलचस्पी थी। मैंने स्विमिंग में नेशनल लेवल तक कई अवॉर्ड्स जीते हैं। कुछ समय बाद स्कूल के थिएटर ग्रुप से परिचय हुआ। एक-दो नाटक देखने के बाद मुझे भी एक्टिंग से प्यार हो गया। यहां प्ले में काम करने के साथ कुछ प्ले डायरेक्ट भी किए। लेकिन स्कूल से निकलने के बाद एक्टिंग से नाता छूट गया। ऑस्ट्रेलिया से आपने ग्रेजुएशन पूरा किया है, वहां पर किस तरह का स्ट्रगल था? रणदीप ने बताया- परिवार वाले चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूं, लेकिन मेरी इसमें दिलचस्पी नहीं थी। फिर मैंने मेलबर्न, ऑस्ट्रेलिया से मार्केटिंग में ग्रेजुएशन किया। दरअसल, एक दोस्त का देखा-देखी मैं भी मेलबर्न चला गया था। उस दोस्त ने कहा था कि वहां पर पढ़ाई के साथ अच्छी नौकरी भी मिल जाएगी और सब कुछ फर्स्ट क्लास रहेगा। हालांकि वहां पहुंचने पर असलियत पता चली। BBA की पढ़ाई खत्म करने के बाद मैंने टैक्सी चलानी शुरू कर दी क्योंकि पढ़ाई के दौरान उधारी हो गई थी। वहां पर कुछ समय काम करने के बाद मैं 2000 में इंडिया वापस आ गया। कब लगा कि एक्टर बनना है? उन्होंने कहा- मुझे सिर्फ एक्टिंग और घुड़सवारी का शौक था। बहुत सोचने के बाद मैंने एक्टिंग को प्रोफेशन के तौर पर चुना और घुड़सवारी को बतौर पैशन आज भी फॉलो करता हूं। मैं जब इंडिया वापस आया, तब पेरेंट्स को बताया कि मुझे एक्टर बनना है। उन्होंने कहा- जो करना है करो, बस हम पर बोझ ना बनना। इसके बाद फिल्म इंडस्ट्री में खुद की पहचान बनाने की तैयारी शुरू हो गई। मुंबई कैसे आना हुआ? उन्होंने बताया- परिवार की रजामंदी मिलने के बाद मैंने दिल्ली में मॉडलिंग की। इसी वक्त मुझे फिल्म मानसून वेडिंग (2001) में काम करने का ऑफर मिला। यहां मुझे 50 हजार रुपए फीस मिली थी, जो कहां और कैसे खत्म हो गई, पता नहीं चला। वरुण बहल जो मेरा बहुत अच्छा दोस्त है और आज फेमस डिजाइनर भी है, उसने मुंबई के लिए फ्लाइट का टिकट कटा कर दिया था। जब मुंबई पहुंचा, तब मेरे पास सिर्फ 1500 रुपए ही थे। परिवार वालों से मांग भी नहीं सकता था। इधर, पहली फिल्म के बाद 4 साल तक मेरे पास कोई काम नहीं था। फिर बहुत मुश्किल से राम गोपाल वर्मा की फिल्म D में काम मिला। फिल्म में मेरे डॉन वाले लुक को दर्शकों ने बहुत पसंद किया और यही से एक्टिंग की गाड़ी चल पड़ी। फिल्म सरबजीत से वेट ट्रांसफॉर्मेशन का सिलसिला शुरू हुआ था। इसके बारे में बताइए? उन्होंने कहा- यह फिल्म 2016 में रिलीज हुई थी। इस फिल्म के लिए मैंने 28 दिनों में 18 किलो वजन कम किया था। मैं इस तरह के वेट गेन और वेट लॉस सिर्फ इसी वजह से कर पाता हूं, क्योंकि मैं एक स्पोर्ट्स पर्सन हूं। इस चीज को करने में मुझे खुशी मिलती है। आप मेरी कोई भी दो फिल्म देख लीजिए, दोनों का कैरेक्टर एक जैसा बिल्कुल नहीं लगेगा। मैं हर किरदार में कुछ नया ढूंढने की कोशिश करता हूं। जैसे कि जब मैं इंस्पेक्टर अविनाश का किरदार प्ले कर रहा था तब उस वक्त 90-92 किलो का था। बहुत खाता रहता था। इस चीज से मेरी मां बहुत खुश थीं। स्टोरी यूपी बेस्ड थी, इसलिए खुद को लखनवी एक्सेंट में ढाला। चाल-चलन सब कुछ वैसा ही किया। फिल्म बैटल ऑफ सारागढ़ी बंद होने जाने पर आप डिप्रेशन में रहे, यह कितना खराब समय था? राजकुमार संतोषी के डायरेक्शन वाली इस फिल्म का रणदीप हिस्सा थे। फिल्म की शूटिंग के लिए उन्होंने सारी तैयारियां कर ली थीं। लेकिन फिल्म ठंडे बस्ते में जा गिरी। इस पर उन्होंने कहा- मैंने इसके लिए बहुत सारी तैयारियां की थीं, लेकिन किन्हीं वजहों से फिल्म बंद हो गई। सिख किरदार में दिखने के लिए मैंने 3 साल तक सिखों के जैसे दाढ़ी बढ़ाई थी। मैं एक बार स्वर्ण मंदिर गया था। मैंने वहां प्रतिज्ञा की थी कि जब तक यह फिल्म अपने अंजाम तक नहीं पहुंच जाती, मैं अपने बाल नहीं कटवाऊंगा। लेकिन इसके बाद भी फिल्म बन न सकी। इस चीज ने मुझे अंदर से तोड़ दिया था। मैं डिप्रेशन में चला गया। खुद को कमरे में बंद कर लेता था। ऐसा लगता था कि मानो घर का कोई शख्स मेरी दाढ़ी काट देगा। परिवार वालों को मेरी यह हालत बहुत तकलीफ देती थी। उन्होंने मुझे कमरे में कुंडी लगाने से मना कर दिया था। उन्हें डर था कि मैं अपने साथ कुछ गलत कर लूंगा। जब मैं इस फिल्म की तैयारी कर रहा था तब मुझे क्रिस हेम्सवर्थ की 2020 की फिल्म एक्सट्रैक्शन में काम करने का ऑफर आया। हालांकि मैंने मना कर दिया। 3 साल बस इसी फिल्म के इंतजार में बैठा रहा लेकिन बात नहीं बनी। मेरा वजन बढ़ गया था और मुझे नहीं पता था कि क्या करना है। इसी दौरान एक दिन अपना मन बहलाने के लिए हॉर्स राइडिंग के लिए चला गया। मैं जैसे ही घोड़े पर बैठा कि चक्कर खाकर नीचे गिर गया। इतने जोर से नीचे गिरा कि घुटना बुरी तरह से चोटिल हो गया। तुरंत अस्पताल जाना पड़ा। 8 हफ्ते तक बेड पर ही रहा। इस समय कुछ काम करने को नहीं था। तभी लिखने का सिलसिला शुरू हुआ, जो अभी तक जारी है। बिस्तर पर बैठे मैंने 15-20 शार्ट स्टोरीज लिख दीं। 5-6 स्क्रिप्ट भी लिखी हैं, जिन पर आने वाले समय में फिल्म भी बनाऊंगा। मैंने तय कर लिया था कि फिल्म बैटल ऑफ सारागढ़ी भले ही ना बन सकी, लेकिन मैं फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ के साथ ऐसा नहीं होने दूंगा। ठीक होने के बाद मैंने फिल्म एक्सट्रैक्शन का ऑफर भी स्वीकार कर लिया था। फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ के लिए आपने वजन कम किया है, यह वेट लॉस जर्नी कैसी रही? रणदीप ने बताया- जब मैंने इस फिल्म के लिए तैयारी शुरू की थी तब मैं 92 किलो का था और ट्रांसफॉर्मेशन के बाद 60 किलो का हो गया। पहले मैं सिर्फ पानी, ब्लैक कॉफी और ग्रीन टी लेता था। फिर मैंने खाने में चीला, डार्क चॉकलेट और नट्स शामिल किए। इसकी वजह से मुझे नींद नहीं आती थी। कमजोरी की वजह से सेट पर गिर जाता था। इस चीज से पेरेंट्स बहुत दुखी रहते थे। इससे वाइफ भी परेशान रहती थीं। जब यह चीजें ज्यादा हो जाती, तब मैं एक होटल में जाकर रह लेता था ताकि वे लोग मेरी कंडीशन से ज्यादा इफेक्ट ना हों। फिल्म के लिए यह करना बहुत जरूरी था, लेकिन परिवार वालों को चिंता लगी ही रहती है। फिल्म सरबजीत और बैटल ऑफ सारागढ़ी के वक्त पेरेंट्स ने कसम दिलाई थी कि मैं फ्यूचर में इस कदर बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन ना करूं। लेकिन हर बार मैंने उनकी यह कसम तोड़ दी। इस बार भी उन्होंने दिलाई है। शायद आने वाले समय में यह कसम भी टूट जाए। क्या इस फिल्म की मेकिंग के वक्त फाइनेंशियल चुनौतियों का सामना करना पड़ा? रणदीप ने कहा- जी हां, बहुत करना पड़ा। मैंने इस प्रोजेक्ट में अपना सब कुछ लगा दिया था। इसके बावजूद दिक्कतें बनी रहीं। पिता ने मेरे फ्यूचर के लिए मुंबई में 2-3 प्रॉपर्टी खरीदी थीं, जिसे मैंने बेच दिया और उस पैसों को फिल्म में लगाया। फिल्म को किसी ने सपोर्ट भी नहीं किया, लेकिन इसके बाद भी मैं रुका नहीं। फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ को मिल रहे पॉजिटिव रिस्पॉन्स पर आपका क्या कहना है? रणदीप कहते हैं- इस चीज से बहुत खुश हूं। फिल्म को जिस तरह का प्यार मिल रहा है, इसे देख मैं बहुत गदगद महसूस कर रहा हूं। रिलीज के इतने दिनों पर बाद भी लोग फिल्म के लिए तालियां बजा रहे हैं। बतौर फिल्ममेकर यह मेरी लिए बहुत बड़ी जीत है। जब यह कहानी मेरे पास आई तब मुझे वीर सावरकर जी के बारे में अधिक जानकारी नहीं थी। लेकिन जब मैंने उनके बारे में पढ़ा तब पता चला कि ऐसे नेक इंसान के साथ इतना अन्याय हुआ है। फिर मैं यह ढूंढने लगा कि उनके साथ इतना गलत क्यों हुआ। सब कुछ जानने के बाद मैंने इसको खुद की जिम्मेदारी मान ली और ठान लिया कि जन-जन तक सावरकर जी की सच्चाई बता कर रहूंगा। इस दौरान सारी परेशानियों को भी झेलने के लिए तैयार था। शायद इसी वजह से जो भी तकलीफ झेलनी पड़ीं, आज उन सबका गम खत्म हो गया है। फिल्म के लिए दर्शकों के प्यार ने एक मरहम का काम किया है। ऑडियंस के प्यार ने मुझे डूबने से बचा लिया है। नए प्रोजेक्ट्स के बारे में बताएं? कुछ समय तक मैं सिर्फ बतौर एक्टर काम करना चाहता हूं। 3-4 बायोपिक वाली फिल्मों का ऑफर आया था, लेकिन मैंने मना कर दिया। मैं कुछ समय तक खुद को आराम देना चाहता हूं। ब्रेक के बाद खुद की लिखी हुईं कहानियों पर फिल्म बनाने का सिलसिला शुरू करूंगा।