एमनेस्टी की रिपोर्ट में भारत में ‘बढ़ती असहिष्णुता’ की निंदा
|अपनी वार्षिक रिपोर्ट में एमनेस्टी इंटरनैशनल ने कहा कि भारत का प्रशासन ‘धार्मिक हिंसा की कई घटनाओं को रोकने’ में नाकाम रहा और कई बार ‘ध्रुवीकरण वाले भाषणों के जरिए तनाव में योगदान’ दिया गया है। एमनेस्टी इंटरनैशनल की रिपोर्ट बुधवार को जारी की गई।
अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था ने वर्ष 2015-16 के लिए जारी अपनी रिपोर्ट में विश्वभर में हो रहे स्वतंत्रता के हनन और कई सरकारों द्वारा अंतरराष्ट्रीय कानून को ‘मनमाने ढंग’ से तोड़ने के खिलाफ चेतावनी दी। इसमें भारत में ‘मुख्य स्वतंत्रताओं पर तीव्र कार्रवाई’ शामिल है। भारत के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया, ‘कितने ही कलाकारों, लेखकों और वैज्ञानिकों ने बढ़ते असहिष्णुता के माहौल के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रीय सम्मान लौटा दिए।’
रिपोर्ट में कहा गया, ‘सरकारी नीतियों के आलोचक नागरिक समाज संगठनों पर प्रशासन ने कार्रवाई की और विदेश से मिलने वाले धन पर प्रतिबंध बढ़ा दिए। धार्मिक तनाव बढ़ गए और लिंग एवं जाति आधारित भेदभाव और हिंसा व्यापक स्तर पर मौजूद रही। सेंसरशिप और कट्टरपंथी हिंदू संगठनों की ओर से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमले बढ़े।’ एमनेस्टी इंडिया के कार्यकारी निदेशक आकार पटेल ने कहा, ‘वर्ष 2015 में, भारत ने मानवाधिकारों पर कई आघात होते देखे। सरकार ने नागरिक समाज संगठनों पर प्रतिबंधों को तीव्र कर दिया।’
आकार पटेल ने कहा, ‘यहां अच्छी बात यह है कि अधिकारों के हनन का विरोध हो रहा है। धार्मिक असहिष्णुता की घटनाओं को लेकर फैला रोष, इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ दमनकारी कानून को सुप्रीम कोर्ट के फैसले द्वारा रद्द किया जाना, भूमि अधिग्रहण कानून के अतार्किक सुधारों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से यह उम्मीद जागती है कि वर्ष 2016 भारत में मानवाधिकारों के लिए एक बेहतर वर्ष हो सकता है।’
एमनेस्टी ने ‘धार्मिक हिंसा की कई घटनाओं को रोक पाने में विफल रहने और कई बार ध्रुवीकरण कराने वाले भाषणों के जरिए तनाव में योगदान देने और जाति आधारित भेदभाव एवं हिंसा बनी रहने’ के लिए भारतीय प्रशासन की आलोचना की। रिपोर्ट में कहा गया, ‘निचले सदन की ओर से अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार रोकथाम) कानून में संशोधन पारित किए जाने से कुछ प्रगति हुई। इसके जरिए नए अपराधों को जिक्र किया गया और इनकी सुनवाई के लिए विशेष अदालतों की जरूरत की बात कही गई और पीड़ितों एवं गवाहों को सुरक्षा देना सुनिश्चित किया गया।’
महिलाओं के खिलाफ हिंसा के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया, ‘हालांकि वर्ष 2014 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 3,22,000 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 37 हजार मामले बलात्कार के थे। फिर भी पुलिस अधिकारियों और भारतीय प्रशासन की ओर से लांछनों और भेदभाव के जरिए महिलाओं को यौन हिंसा की शिकायत दर्ज कराने से रोका जाता रहा। अधिकतर राज्यों में अब भी महिलाओं के खिलाफ हिंसा से निपटने के लिए पुलिस के लिए मानक प्रक्रियाओं का अभाव है।’
रिपोर्ट में सरकार के आलोचक गैर सरकारी संगठनों को दबाने के लिए अपनाए जा रहे ‘प्रतिबंधात्मक विदेशी वित्त पोषण नियमों’ की ओर भी इशारा किया गया। रिपोर्ट में कहा गया, ‘सकारात्मक स्तर पर देखा जाए तो, सुप्रीम कोर्ट ने प्रताड़ना और अन्य उल्लंघनों को रोकने के लिए सभी जेलों में सीसीटीवी लगवाए। वहीं सरकार ने कहा कि वह प्रताड़ना को अपराध करार देने के लिए पीनल कोड में संशोधन का विचार कर रही है।’ हालांकि, एक अन्य सकारात्मक बदलाव के रूप में रिपोर्ट में पूर्वोत्तर भारत में सरकार और नैशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (आइजक-मुइवा) के बीच हुए ऐतिहासिक शांति समझौते की सराहना की गई।
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