एक महीना: काम कम, लड़ाई ज्यादा
| आम आदमी पार्टी की नई सरकार को सत्ता में आए करीब एक महीना बीत गया है। अगर इस परफॉर्मेंस की तुलना 49 दिन की सरकार के काम से की जाए तो स्पीड बेहद कम नजर आती है। इस बार जमकर कमिटियां तो बनी हैं, लेकिन जमीनी काम बेहद कम दिखाई दे रहा है। खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दावा किया था कि सत्ता में आने के 8 दिन के अंदर दिल्ली को भ्रष्टाचार से मुक्त कर देंगे, लेकिन अभी तक एंटी-करप्शन की हेल्पलाइन का पता तक नहीं है। पिछले 20 दिन से लगातार पार्टी आपसी कलह में उलझकर रह गई है। इससे कामकाज की स्पीड भी प्रभावित हुई है। खुद केजरीवाल के खिलाफ उन्हीं की पार्टी के पूर्व विधायक के स्टिंग टेप से अफरातफरी मची हुई है। हालांकि, किसी भी सरकार के काम की समीक्षा करने के लिए एक महीना बेहद कम है। करप्शन पर हेल्पलाइन तक नहीं पिछली बार जब आम आदमी पार्टी की 49 दिन सरकार चली थी तो केजरीवाल सरकार ने बेहद तेजी के साथ काम किए थे। सरकार बनने के कुछ दिनों में ही एंटी-करप्शन की हेल्पलाइन पर काम शुरू हो गया था, स्टिंग करने वालों ने हेल्पलाइन पर विडियो और ऑडियो भेजने शुरू कर दिए थे, लेकिन इस बार अभी तक ना तो हेल्पलाइन बनी और न ही करप्शन के मामले पकड़े जाने शुरू हुए। इस बार खुद सरकार ही कई स्टिंग में फंसती नजर आ रही है। आप पार्टी के ही पूर्व विधायक राजेश गर्ग ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ स्टिंग का टेप जारी किया। इसके बाद एक और स्टिंग ऑ़़डियो उनकी ही पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा के पदाधिकारी ने जारी किया। कांग्रेस के पूर्व विधायक आसिफ मोहम्मद खान भी आप नेता संजय सिंह का एक स्टिंग अपने पास होने का दावा कर चुके हैं, साथ ही उन्होंने कहा है कि उनके पास केजरीवाल का भी एक स्टिंग है। पिछले 10 दिन से खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली से बाहर इलाज करा रहे हैं। इसका असर भी सरकार पर पड़ता नजर आ रहा है। पार्टी की कलह से काम कम पिछले महीने की 26 फरवरी से आम आदमी पार्टी में इस कदर अंदरूनी लड़ाई चल रही है कि उसे कंट्रोल कर पाना मुश्किल हो रहा है। पार्टी के फाउंडर मेंबर प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निकालने के बाद से ब्लॉग और इस्तीफे का दौर शुरू हुआ। पार्टी में अंदर से तरह-तरह की आवाजें उठीं। दोनों तरफ से जमकर खूब पत्रबाजी हुई। इसका असर सरकार के काम काज पर भी पड़ता नजर आया। बिजली और पानी पर ऐक्शन अगर वास्तव में देखा जाए तो 1 महीने की सरकार में 400 यूनिट तक बिजली के रेट कम करने और हर महीने 20 हजार लीटर पानी फ्री करने की स्कीम ऐसी थी, जिससे लोगों को सीधे लाभ मिलता नजर आया, हालांकि इन दोनों पर सब्सिडी देने से सरकार पर 1677 करोड़ का भार पड़ेगा। इस बार रेवेन्यू को लेकर सरकार की हालत पहले से ही पतली है। यूं तो सरकार ने 70 पाइंट एजेंडा लागू करने की बात कही है, लेकिन न तो यह पता है कि सीसीटीवी कैमरों पर क्या काम हुआ, और न ही पूरी दिल्ली को फ्री वाई-फाई देने की योजना की कोई सटीक जानकारी है। हालांकि, सरकार वाई फाई की योजना 1 साल में पूरा करने की बात कह रही है। शुरू भी नहीं हुआ काम महिला सुरक्षा के लिए सुरक्षा दल बनाने की बात कहां तक पहुंची और नए स्कूल, कॉलेज खोलने जैसे मामले ऐसे हैं, जिन पर अभी तक कोई खास प्रोग्रेस नजर नहीं आ रही है। ऐसा ही और मामलों में पार्किंग की समस्या हल करने, ट्रांसपोर्ट सिस्टम को सुधारने, जहरीली होती दिल्ली की आबोहवा साफ करने पर कोई खास फोकस नजर नहीं आ रहा है। मेनटनंस ना होने के कारण पीडब्लूडी की सड़कों पर गड्ढे पड़ गए हैं। फ्लाई ओवर और एलिवेटेड रोड प्रॉजेक्ट्स की रफ्तार बेहद धीमी पड़ गई है। फिलहाल शहर को जाम से मुक्ति दिलाने के लिए कोई नए प्रोजेक्ट की घोषणा इस बीच नहीं की गई है। इस बार सरकार ने खूब कमेटियां और कमीशन बनाए हैं। वादों को पूरा कराने के लिए दिल्ली डायलॉग कमिशन का गठन किया गया, डिस्ट्रिक्ट लेवल कमेटियां का गठन हुआ और अब सरकार 21 संसदीय सचिव बनाने जा रही है।
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