इस मॉनसून सीजन में क्लाउड सीडिंंग करेगी महाराष्ट्र सरकार
|सूखे का सामना कर रही महाराष्ट्र सरकार इस साल के मॉनसून सीजन में कम बारिश का कोई रिस्क नहीं लेना चाहती। इसके चलते महाराष्ट्र सरकार ने क्लाउड सीडिंग (बादलों का बीजारोपण) की योजना बनाई है। मॉनसून की शुरुआत के साथ ही महाराष्ट्र सरकार इस स्कीम पर काम करने की योजना बना रही है ताकी पानी की कमी न होने पाए और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में पीने के पानी की पूरी उपलब्धता हो सके। यह प्रयोग पिछले साल अगस्त से नवंबर के दौरान भी किया गया था, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि यह प्रॉजेक्ट बहुत ज्यादा कामयाब नहीं हो सका था।
इसकी वजह यह भी थी कि उस दौरान बादलों में आर्द्रता नहीं थी। इसकी वजह यह भी हो सकती है कि उस समय मॉनसून का आखिरी दौर था। इससे सबक लेते हुए महाराष्ट्र सरकार ने इस साल मॉनसून की शुरुआत के साथ ही क्लाउड सीडिंग शुरू करने का फैसला लिया है ताकी पानी की कोई कमी नहीं हो सके। प्रदेश सरकार की योजना इस साल जून से लेकर अगस्त तक क्लाउड सीडिंग पर काम करने की है।
क्लाउड सीडिंग वह प्रक्रिया है, जिसके तहत कृत्रिम वर्षा के उद्देश्य से बादलों में कृत्रिम नाभिकों या केंद्रकों को उत्पन्न किया जाता है. जिनके ऊपर लघु जलसीकरों अथवा हिमकणों के एकत्रित होने से उनके आकार में वृद्धि होती है और जल की बूंदों अथवा हिम गोलियों का निर्माण होता है और बारिश शुरू हो जाती है।
क्लाउड सीडिंग का विचार पहली बार 19वीं शताब्दी के आखिर में सामने आया था, लेकिन इस दिशा में वास्तविक प्रयोग 20वीं शताब्दी के चतुर्थ दशक में ही संभव हुए। इसके लिए खोज किए गए सर्वाधिक प्रभावशाली पदार्थों में ठोस कार्बन डाई-आक्साइड की गोलियां (शुष्क हिम), बारीक चूर्ण नमक, चांदी के आयोडाइड का धुआं मुख्य हैं। इस शोध का मुख्य उद्देश्य अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में कृत्रिम रूप से वर्षा की मात्रा की अपेक्षाकृत अधिक आपूर्ति कराना है किंतु यह तभी संभव हो सकता है, जब आकाश में उपयुक्त बादल विद्यमान हों क्योंकि विभिन्न प्रकार के कृत्रिम नाभिकों पर जलसीकरों या हिमकणों के एकत्रित होने पर ही वर्षा हो सकती है।
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