इस बजट में राजकोषीय घाटे को अलग रख विकास पर ध्यान दें जेटली: अर्थशास्त्री
|अगले महीने अपना तीसरा आम बजट पेश करने जा रहे वित्त मंत्री अरुण जेटली के सामने कई सारी चुनौतियां हैं। हालांकि हाल ही में रॉयटर्स द्वारा इकॉनमिस्ट के बीच कराए गए सर्वे में ज्यादातर इकॉनमिस्ट ने माना कि जेटली को इस बजट में राजकोषीय घाटे को अलग रखकर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर विशेष ध्यान देना चाहिए, जिससे विकास में किसी तरह की रुकावट न आए।
लेकिन इस पोल में हिस्सा लेने वाले कई इकॉनमिस्ट ऐसे भी हैं जिनका मानना है कि जेटली को बजट को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए, साथ ही टैक्स ढांचे में भी बड़े बदलाव करने चाहिए। ये दोनों ऐसे मुद्दे हैं, जो बीते वर्ष काफी सुर्खियों में रहे और जिन पर काफी बहस भी हुई।
यह भी सवाल उठे कि क्या पीएम मोदी को कमजोर विकास दर, राजस्व और घटते निर्यात को मजबूत करने के बारे में किसी ने सलाह दी है या नहीं? इस पोल में हिस्सा लेने वाले इकॉनमिस्ट ऋषि शाह ने कहा, ‘हमें आर्थिक मजबूती की ओर ध्यान देना होगा, नहीं तो अर्थव्यवस्था बुरा तरह प्रभावित हो सकती है।’
पिछले साल के बजट से पहले कराए गए पोल में भी कई इकॉनमिस्ट ने विकास को प्राथमिकता बताया था, जबकि बड़ी तादाद उन लोगों की भी थी जिन्होंने सरकार को आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ने की सलाह दी थी।
अर्थव्यवस्था को लेकर लंबे समय से आलोचकों के निशाने पर चल रहे जेटली के कार्यकाल के प्रश्न पर पोल में हिस्सा लेने वाले 27 में से 18 अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अरुण जेटली का बतौर वित्त मंत्री कार्यकाल अगले एक साल तक सुरक्षित रह सकता है। सिर्फ एक तिहाई का ही मानना है कि यह बजट जेटली के कार्यकाल का आखिरी बजट हो सकता है।
हालांकि जेटली पिछले एक साल से सरकार के महत्वाकांक्षी जीएसटी बिल पर सभी दलों को एकमत नहीं कर पाए हैं, जो कि भारत जैसे बड़े बाजार को एक कॉमन मार्केटप्लेस बना सकता है। सरकार के विश्वस्त सूत्रों की मानें तो इस बजट के बाद जेटली रक्षा मंत्रालय संभाल सकते हैं, जबकि कोयला और ऊर्जा मंत्रालय संभाल रहे पीयूष गोयल को वित्त मंत्रालय दिया जा सकता है।
पीएम मोदी के टॉप इकनॉमिक अडवाइज़र अरविंद पनगड़िया ने जहां एक ओर सरकार को सलाह दी है कि वह राजकोषीय घाटे को लेकर योजना में कोई फेरबदल न करे, वहीं इसके उलट विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को फिलहाल विकास के उन लक्ष्यों पर ध्यान देना चाहिए जो उसने पिछले बजट में तय किए थे।
आम राय देखी जाए तो कई इकॉनमिस्ट का मानना है कि 2016-17 के लिए राजकोषीय घाटा जीडीपी का 3.7 पर्सेंट रहना चाहिए, जो कि फिलहाल 3.5 पर्सेंट है।
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