इंडियन IT इंडस्ट्री के लिए यूरोप बना चिंता का सबब
| अनिर्बाण सेन, बेंगलुरु इंडिया की 146 अरब डॉलर की इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के लिए यूरोप को अगला बड़ा मुकाम माना जाता है। हालांकि देश की टॉप सॉफ्टवेयर कंपनियों के लिए यह दिक्कत का सबब बनता जा रहा है, खासतौर से इंफोसिस और विप्रो के लिए। मार्च 2015 तक के फाइनेंशियल ईयर में इंडियन सॉफ्टवेयर एक्सपोर्टर्स को दिक्कत रही। टीसीएस और कॉग्निजेंट जैसी बड़ी कंपनियों को भी यूरो में उतार-चढ़ाव का असर सहना पड़ा। यूरोप में हाल तक 25-30 पर्सेंट की ग्रोथ रेट से दौड़ रहीं इंडियन आईटी कंपनियों को अब वह रफ्तार बनाए रखने में दिक्कत हो रही है क्योंकि एस्ट्राजेनेका और टोयोटा मोटर कॉरपोरेशन की यूनिट जैसी जैसी इस इलाके की टॉप कस्टमर्स खर्च घटा रही हैं। टीसीएस, विप्रो और इंफोसिस के लिए मार्च 2015 तक के तीन महीनों में रेवेन्यू पिछले साल के इसी क्वॉर्टर की तुलना में घटा है। अमेरिका की कॉग्निजेंट को भी इस दौरान करेंसी में उतार-चढ़ाव से दिक्कत हुई और उसका रेवेन्यू लगभग सपाट रहा। हालांकि वह विप्रो से आगे निकल गई। सबसे बड़ी गिरावट विप्रो के मामले में रही। बेंगलुरु की विप्रो ने अपने इस अंडरपरफॉर्मेंस का कारण एनर्जी सेक्टर में ज्यादा एक्सपोजर को बताया, जिसे गिरती प्राइसेज से चोट लगी। विप्रो के सीईओ टी के कुरियन ने अप्रैल में रिजल्ट जारी होने के बाद एनालिस्ट्स से बातचीत में कहा था, ‘अगर यूरोप से आप हमारे रेवेन्यू पर नजर डालें तो ऑयल और गैस के चलते इस पर बहुत बुरा असर रहा है। हमारी कुछ बड़ी कस्टमर्स इसी सेगमेंट्स से हैं।’ कुरियन ने कहा कि विप्रो यूरोप में इनवेस्टमेंट्स घटा नहीं सकती है, भले ही करेंसी में उतार-चढ़ाव हो रहा हो। उन्होंने कहा कि कंपनी को यूरोप में डील्स मिलती रही हैं और उम्मीद है कि दूसरी तिमाही से नए ऑर्डर्स से रेवेन्यू बढ़ने लगेगा। यूरोप में टीसीएस को भी इसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसके सीईओ एन चंद्रशेखरन ने कहा है कि एनर्जी सेक्टर को रिकवर करने में कुछ तिमाहियां लग सकती हैं। करेंसी में उतार-चढ़ाव के बीच पिछले दो वर्षों में इंफोसिस और विप्रो के हाथ से काफी मार्केट शेयर टीसीएस और कॉग्निजेंट के पास चला गया। पिछले फाइनेंशियल ईयर में इंफोसिस और विप्रो ने यूरोप से 25-30 पर्सेंट की ग्रोथ दर्ज की थी। इस इलाके से इंफोसिस, विप्रो और कॉग्निजेंट ने कुलमिलाकर जितना इंक्रीमेंटल रेवेन्यू दर्ज किया, उससे टीसीएस ने हासिल किया। टीसीएस यूरोप से करीब 4.36 अरब डॉलर का रेवेन्यू जुटाती है। इसने 2014-15 में वहां से 51.6 करोड़ डॉलर का इंक्रीमेंटल रेवेन्यू जोड़ा। इंक्रीमेंटल रेवेन्यू का मतलब किसी खास पीरियड में हासिल एक्चुअल एमाउंट होता है। इंडियन आईटी कंपनियों के मार्केट शेयर का अंदाजा लेने के लिए इस पैमाने का ज्यादा इस्तेमाल होने लगा है। एचएफएस रिसर्च के एमडी (आईटी आउटसोर्सिंग रिसर्च) टॉम रेनर ने कहा, ‘इंडियन कंपनियों को लोकलाइजेशन और सेल्स एग्जिक्यूशन पर ज्यादा जोर देना होगा। संभवत: इसी के चलते टीसीएस और कॉग्निजेंट आगे हैं।’
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