इंटरेस्ट रेट्स घटाने की गुंजाइश बेहद कम है: कोटक
|दुनियाभर में कैश की आसानी से उपलब्धता और कम ब्याज दरों का माहौल हो सकता है कि जल्द खत्म हो जाए क्योंकि पश्चिम एशिया में जियोपॉलिटिकल टेंशन के कारण ऑयल प्राइसेज में तेजी बनी रहेगी। यह बात कोटक महिंद्रा बैंक के एमडी उदय कोटक ने कही है। एम सी गोवर्द्धन रंगन और जोएल रेबेलो को दिए इंटरव्यू में कोटक ने कहा कि ऐसी सूरत को देखते हुए भारत में ब्याज दरों में और कमी करने की गुंजाइश सीमित हो सकती है।
कोटक ने कहा, ‘इंडिया में हम ऑयल इकनॉमी की ताकत और ऑयल पर इंडियन इकनॉमी की बहुत ज्यादा निर्भरता को कम करके आंकते हैं। रेट्स में अगर क्वॉर्टर पर्सेंटेज प्वाइंट्स की भी कमी हो तो मुझे हैरानी होगी। रेट्स घटाने की बहुत कम गुंजाइश है।’ पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
लग रहा है कि नए बैंकरप्सी प्रोसेस से बैंकिंग सिस्टम का ठीक से तालमेल नहीं बन पा रहा है। आपको क्या लग रहा है?
मेरी नजर में यह कर्ज लेने वालों के मुकाबले कर्ज देने वालों के पक्ष में निर्णायक ढंग से झुका हुआ है। जिसने सोचा था कि कर्ज चुकाना उसकी जिम्मेदारी नहीं है, उसे अब अहसास हो रहा है कि कन्नी नहीं काटी जा सकती है। लंबी अवधि के लिए यह निश्चित रूप से अच्छी बात है। शॉर्ट टर्म में कुछ परेशानियां हैं। हालांकि सिस्टम अब कर्ज देने वालों को ज्यादा अधिकार देकर कह रहा है कि जिस तरह आप कारोबार कर रहे थे, उसका आधार बदलिए।
कर्ज न चुका पाने वाली कंपनियों के प्रमोटरों को उन एसेट्स के लिए बोली लगाने की इजाजत देने की आलोचना क्यों हो रही है?
कानून तो इसकी इजाजत देता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी पर 50000 करोड़ रुपये का कर्ज हो तो सबसे पहले तो फोरेंसिक ऑडिट सहित किसी भी तरीके से यह देखना होगा कि पैसा इधर-उधर तो नहीं किया गया था। अगर हेराफेरी की गई हो तो विलफुल डिफॉल्ट के मामले वाला रास्ता पकड़ें और प्रमोटरों को घेरें। अगर अगर मान लें कि आप यह साबित ही नहीं कर सकें तो मामला विलफुल का नहीं रहेगा। ऐसी सूरत में मान लें कि चार लोग बोली लगा रहे हों, प्रमोटर की बोली 30000 करोड़ रुपये की हो और बाकियों में सबसे बड़ी बोली 25000 करोड़ रुपये की हो और कैश बिड के लिए हायर वेटेज भी दिया जा रहा हो। एक चर्चा में हमने कहा था कि रिस्क एडजस्टेड प्रेजेंट वैल्यू के आधार पर मूल्यांकन होना चाहिए। अगर कोई 10 वर्षों के बाद जीरो इंटरेस्ट पर चुकाने का वादा करे तो वह आज पेमेंट करने वाले के बराबर तो नहीं होगा। इस आधार पर अगर प्रमोटर की बोली ज्यादा हो और वह विलफुल डिफॉल्टर भी न हो तो स्थिति मुश्किल हो जाएगी, बशर्ते उसने कुछ गलत न किया हो।
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