इंग्लिश नहीं आती थी, इसलिए प्रोजेक्ट्स से निकाले गए:पंकज त्रिपाठी के सीनियर हैं रोहिताश्व, लेकिन उनके जितने फेमस नहीं; बोले- इसका मलाल आज भी

लड्डू के भइया या तिवारी जी…. ये दो नाम सुनते ही जिस शख्स का चेहरा आंखों के सामने घूमने लगता है, वो हैं ‘भाबी जी घर पर हैं’ फेम रोहिताश्व गौड़। इस बार की स्ट्रगल स्टोरी में हमने इन्हीं की कहानी को समेटा है। हरियाणा में जन्मे रोहिताश्व की परवरिश शिमला में हुई। उन्होंने बताया कि NSD में एडमिशन तो पहले ही अटेम्प्ट में मिल गया था, लेकिन मुंबई का संघर्ष थका देने वाला था। मुंबई आते ही उन्हें एंकीलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस बीमारी हो गई, जिस वजह से उन्हें दिल्ली वापस जाना पड़ा। कुछ साल बाद मुंबई आकर उन्होंने करियर की दूसरी पारी शुरू की। ना जाने कितने संघर्ष के बाद उन्होंने पहले टीवी का रुख किया, फिर बड़े पर्दे पर भी दिखे। काम तो मिला, लेकिन असल पहचान के लिए संघर्ष करते रहे। आखिरकार लंबे इंतजार के बाद उन्हें टीवी शो ‘भाबी जी घर पर हैं’ में काम मिला। हालांकि, उन्होंने सोचा नहीं था कि यह शो इतना हिट होगा और उनकी किस्मत बदल जाएगी। वहीं, लोगों को यकीन भी नहीं था कि वे इतने परफेक्ट तरीके से मनमोहन तिवारी का रोल निभा पाएंगे। सबसे पहले रोहिताश्व ने ‘भाबी जी घर पर हैं’ शो के बारे में बात की। उन्होंने कहा, ‘हमने कभी नहीं सोचा था कि यह शो इतने साल चलेगा। सौम्या जी और हम सबको लगा था कि यह 4 महीने बाद ही बंद हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अब इस शो को 10 साल होने वाले हैं। इससे पहले मैं शो ‘लापतागंज’ में काम करता था, जिसमें मेरा किरदार शांत स्वभाव का था। यही वजह रही कि जब इस शो में मुझे कास्ट किया गया तो कई लोगों ने आपत्ति भी जताई कि मैं इस रोल को नहीं निभा पाऊंगा, लेकिन शो के राइटर ने मुझ पर भरोसा जताया।’ पिता जी कम कमाते थे, मां को खर्चा मैनेज करना पड़ता था रोहिताश्व ने बताया कि उनका जन्म हरियाणा के गांव कालका में हुआ था। हालांकि, उनकी परवरिश शिमला में हुई, जहां उनके पिता सरकारी नौकरी करते थे। उन दिनों के बारे में रोहिताश्व ने बताया, ‘भगवान की कृपा रही कि बचपन बहुत अच्छा बीता। कभी बहुत ज्यादा तंगी का दौर नहीं देखा। हां, इतना जरूर था कि पिता जी की सैलरी बहुत ज्यादा नहीं थी। ऐसे में मां के लिए घर के खर्चे को मैनेज करना थोड़ा मुश्किल था। मुश्किल इसलिए भी था क्योंकि मां की चाहत थी कि हम सभी भाई-बहन अच्छे स्कूल में पढ़ें।’ एक्टिंग के लिए 11वीं में जानबूझकर फेल हो गए थे रोहिताश्व ने आगे बताया कि उनका जुड़ाव एक्टिंग से कैसे हुआ। उन्होंने कहा, ‘शिमला में पिताजी ऑल इंडिया एसोसिएशन चलाते थे, जिसमें डांस और ड्रामा कॉम्पिटिशन समय-समय पर होता रहता था। इस वजह से कह सकता हूं कि मुझे एक्टिंग विरासत में मिली है। हालांकि, पिताजी नहीं चाहते थे कि मैं एक्टिंग को प्रोफेशन बनाऊं। वे चाहते थे कि मैं साइंस स्ट्रीम से पढूं, लेकिन मैं ऐसा बिल्कुल नहीं चाहता था। मेरे एक टीचर ने भी उनको समझाया था कि मैं एक्टिंग फील्ड में अच्छा कर सकता हूं, लेकिन वे नहीं माने। तब मैंने तरकीब निकाली और 11वीं में जानबूझकर फेल गया। तब उन्हें मजबूरन मेरा एडमिशन आर्ट स्ट्रीम में करवाना पड़ा।’ पहले ही अटेम्प्ट में NSD में एडमिशन मिला एक बार शिमला में लैंग्वेज आर्ट एंड कल्चर की तरफ से NSD वर्कशॉप हुई थी। इस वर्कशॉप में बहुत सारे टीचर NSD से आए हुए थे। यहां मैंने भी एक महीने ट्रेनिंग ली थी। उनमें से किसी टीचर ने कहा था कि मुझे NSD से एक्टिंग कोर्स करना चाहिए। उनकी बात मानकर मैंने पहले ग्रेजुएशन पूरा किया और फिर NSD का एंट्रेंस एग्जाम दिया। खुशकिस्मती रही कि मेरा पहले ही अटेम्प्ट में सिलेक्शन हो गया। मैंने यहां की फीस स्कॉलरशिप के पैसे से भरी। 3 साल के कोर्स के बाद आम स्ट्रगलर्स की तरह एक्टर बनने का ख्वाब लेकर मुंबई आना हुआ।’ संघर्ष से भरा रहा मुंबई का शुरुआती सफर रोहिताश्व ने बताया कि उन्हें मुंबई में आए कुछ ही दिन हुए थे कि उन्हें वापस दिल्ली जाना पड़ा। उन्होंने बताया, ‘NSD से पास आउट हो जाने के बाद मैं 1989 में सपनों की नगरी मुंबई आया। सब सोचते हैं कि NSD से पासआउट हैं, तो यहां काम आसानी से मिल जाएगा। हालांकि, वास्तव में ठीक इसका उल्टा होता है। मुंबई पहुंचते ही सबसे पहले रहने के लिए चॉल में एक कमरा ढूंढा। एक छोटा सा कमरा मिला, जहां 5-6 लोग पहले से रहते थे। मन तो नहीं था कि उस कमरे में रहूं, वहां सोते वक्त करवट भी लेना मुश्किल हो। हालांकि, दूसरा कोई रास्ता भी नहीं था। शुरुआती कुछ दिन सिर्फ काम के लिए भटकने में बीते। जहां काम की तलाश में जाता, निराशा ही हाथ लगती। दरअसल, उस वक्त सिर्फ DD1 चैनल ही था और महाभारत, रामायण और चाणक्य जैसे शोज बनने शुरू ही हुए थे। इस वजह से लोगों की पहली पसंद टीवी शोज बन गए। नतीजतन बड़े पर्दे से ज्यादा इन शोज के ऑडिशन के लिए लंबी-लंबी लाइन लगी रहती थी। आज टीवी जगत के बड़े-बड़े स्टार भी उस वक्त लाइन में लगे रहते थे। ऐसे में काम मिल पाना बहुत मुश्किल था। काम के लिए मेरा संघर्ष जारी था कि एक बीमारी ने पूरी मेहनत पर पानी फेर दिया।’ छत पर सोने की वजह से पीठ की बीमारी हुई, वापस दिल्ली जाना पड़ा ‘एक दिन घर की मालकिन के बेटे का जन्मदिन था। उसने अपने मेहमानों के लिए सारे किराएदारों से कमरा खाली कर छत पर सोने को कह दिया। हम सबने इस पर आपत्ति भी जताई, लेकिन वो अपने फैसले पर अडिग रहीं। थक-हारकर हम सभी छत पर सोने चले गए। कभी छत पर सोने की आदत नहीं थी। रात में फ्लाइट्स की आवाज से सोने में बहुत दिक्कत हुई। जैसे-तैसे आंख लगी। सूरज की रोशनी की वजह से सुबह आंख जल्दी खुल गई, लेकिन उसके अगले पल जो हुआ, वो डरावना था। टंकी के पानी के रिसाव से पूरी पीठ भीग गई थी। मैंने जैसे ही उठने की कोशिश की, उठ ही नहीं पाया। इस हालत में कुछ दोस्त मुझे उठा कर अस्पताल लेकर गए। इन दोस्तों में एक नाम संजय मिश्रा का भी था। हालत देख डॉक्टर ने आनन-फानन में एक्स रे किया। पता चला कि एंकीलॉजिंग स्पॉन्डिलाइटिस का अटैक आया है, जिसका तुरंत इलाज करना पड़ेगा। हालांकि, मुंबई के मौसम में जल्द ठीक होना मुश्किल था। मेरे पास दूसरा कोई ऑप्शन भी नहीं था। आखिरकार मुझे दिल्ली वापस आना पड़ा। यहां मैंने कुछ साल NSD के रिपर्टरी में काम किया।’ छोटे-मोटे रोल से गुजारा करते थे, लगभग 1000 कैमियो के बाद पहला फुल रोल रोहिताश्व ने आगे बताया, ‘मैं 1997 में वापस मुंबई आ गया। दोबारा काम मांगने की जद्दोजहद शुरू हुई। कुछ दिन के संघर्ष के बाद मुझे टीवी शो ‘मुझे चांद चाहिए’ में काम मिला, जिसे सतीश कौशिक और राजा बुंदेला ने डायरेक्ट किया था। हालांकि, इसके बाद भी संघर्ष खत्म नहीं हुआ। लगभग 2-3 साल मेरे पास बिल्कुल काम नहीं था। पिताजी कहते थे कि मैं शिमला चला आऊं और वहां कुछ दूसरा काम देख लूं, लेकिन मैं अपने ख्वाब के साथ नाइंसाफी नहीं कर सकता था। तब पिताजी ने मुझे 3 साल की मोहलत दी। इन 3 सालों में बहुत सारे एपिसोडिक काम किए, मतलब कि किसी शो में 2 एपिसोड, तो किसी में 3। ये काम करके महीने के 7-8 हजार रुपए इकट्ठा हो जाते, जिससे खर्च तो निकल ही जाता था। फिर मैं राइटर अश्विनी धीर के साथ काम करने लगा। उन्होंने ही मुझे टीवी शो ‘लापतागंज’ में काम दिया जिससे मेरी किस्मत पलट गई। इससे पहले मैंने टीवी और फिल्मों में 1000 से ज्यादा कैमियो किए थे।’ इंग्लिश नहीं आने की वजह से कई बड़े प्रोजेक्ट्स हाथ से निकले रोहिताश्व को इंग्लिश अच्छी नहीं थी। इसकी वजह से उन्हें कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा था। उन्होंने कहा, ‘एक बार बड़े प्रोडक्शन हाउस में ऑडिशन देने गया था। ऑडिशन भले ही हिंदी में होना था, लेकिन जब कास्टिंग टीम को पता चला कि इंग्लिश में मेरे हाथ तंग हैं, उन्होंने वो रोल मुझे नहीं दिया। ये सब देख मैं भी सरप्राइज रह गया था। ऐसे ना जाने कितनी बार प्रॉपर इंग्लिश नहीं आने की वजह से काम मिलने में दिक्कतें हुईं।’ एक्टर जानकर लोग शादी के लिए इनकार कर देते थे रोहिताश्व ने बताया कि एक्टर होने की वजह से उनकी शादी भी नहीं हो रही थी। इस बारे में उन्होंने कहा, ‘जब भी कोई रिश्ता लेकर आता तो उनका पहला सवाल होता था कि मैं करता क्या हूं। जैसे ही उन लोगों को पता चलता कि मैं एक्टर हूं, झट से रिश्ते के लिए ना कर देते थे।’ एक दिन IPTA (इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन) के एक नाटक के रिहर्सल के दौरान मेरी मुलाकात रेखा से हुई। इस मुलाकात का किस्सा यूं है कि एक दिन नाटक के रिहर्सल के बीच एक दोस्त ने पूछा- आगे का क्या प्लान है? मैंने कहा- शादी करने के बारे में सोच रहा हूं, लेकिन लड़की नहीं मिल रही है। तभी उस दोस्त ने रेखा को बुलाया और कहा- इससे शादी कर लो। मैं सकपका गया और कहा- ऐसे कैसे इनसे शादी कर सकता हूं। हालांकि, रेखा जान गई थी कि ये सब मजाक चल रहा है। उस मुलाकात के बाद हमारी बातचीत होनी लगी और हमने शादी करने का फैसला कर लिया। फिर परिवार वालों ने भी हमारे इस रिश्ते को खुशी-खुशी अपना लिया। संघर्ष के दौर में रेखा ने बहुत सपोर्ट किया है। वे मेरे लिए सच में लक्ष्मी हैं, उनसे शादी करने के बाद करियर में ग्रोथ ही देखने को मिली है।’ रोहिताश्व बोले- नवाजुद्दीन, पंकज त्रिपाठी जैसे एक्टर करियर के टॉप पर हैं, लेकिन मैं नहीं रोहिताश्व ने बताया कि वे आज सफल हैं, लोग उन्हें पहचानते हैं, लेकिन पंकज त्रिपाठी और नवाजुद्दीन सिद्दीकी जैसी पहचान ना बना पाने की कसक है। उन्होंने कहा, ‘आज OTT का बोलबाला है। नवाजुद्दीन, पंकज त्रिपाठी जैसे सेलेब्स OTT पर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। ये सब भी NSD से जुड़े हुए थे, वहां ये लोग मेरे जूनियर थे, लेकिन आज सफल एक्टर्स हैं। ये सब देख दुख होता है कि मैं जितना सफल होना चाहता था, उतना नहीं हो पाया।’ जिस दिन पिता का निधन हुआ, वो जीवन का सबसे खराब पल था रोहिताश्व ने जिंदगी के सबसे खराब पल के बारे में भी बात की। उन्होंने बताया, ‘जिंदगी का वो दिन सबसे खराब था, जिस दिन पिता जी का निधन हुआ। इस दिन मैं बहुत रोया था। ऐसा लगा मानो कि जिस्म का कोई हिस्सा ही कट गया हो। वो पिता के साथ-साथ एक सच्चे दोस्त भी थे, उन्होंने हर कदम पर मुझे सपोर्ट किया था।’

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