आरआईएल को ‘मूल्यह्रास’ लाभ में नियमों का उल्लंघन : कैग
|नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की एक रिपोर्ट के अनुसार रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) को एक सौर ऊर्जा परियोजना के लिए ‘त्वरित मूल्य ह्रास’ के तहत अनुचित लाभ हासिल हुआ जबकि इसके लिए उसे एक सरकारी योजना के तहत 22.49 करोड़ रुपये का प्रोत्साहन भी दिया गया।
कैग की संसद में मंगलवार पेश रिपोर्ट के अनुसार निरुपण कार्यक्रम के तहत, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (जीबीआई) हासिल करने वाले सौर फोटोवोलेटिक बिजली संयंत्र डेवलपर आयकर कानून 1961 के अनुसार ‘त्वरित मूल्य ह्रास’ (एडी) लाभ लेने के पात्र नहीं हैं।
इसके अनुसार, ‘नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) को 22.49 करोड़ रुपये के उत्पादन आधारित प्रोत्साहन दावों के लिए धन जारी करते समय ने यह (उक्त प्रावधान) सुनिश्चित नहीं किया। यही कारण है कि आरआईएल ने अगस्त 2010 से दिसंबर 2012 की अवधि में जीबीआई व एडी, दोनों दावे हासिल किए।’
इस बारे में आरआईएल को भेजे सवालों का कोई जवाब नहीं आया। राजस्थान अक्षय उर्जा निगम (आरआरईसीएल) ने जून 2008 में निरुपण योजना के तहत नागौर (राजस्थान) में आरआईएल की 5 मेगावॉट की ग्रिड इंटरेक्टिव सोलर पीवी बिजली उत्पादन परियोजना मंजूर की। मंत्रालय ने आरआईएल को जीबीआई की अनुमति की मंजूरी आईआरईडीए के जरिए दी।
रिपोर्ट के अनुसार किसी भी तरह के उल्लंघन की स्थिति में, आईआरईडीए को उक्त परियोजना के लिए जीबीआई जारी करने को तुरंत रोक देना चाहिए था और मामला मंत्रालय को भेजना था।
रिपोर्ट के अनुसार आईआरईडीए ने जुलाई 2013 में यह पाया कि आरआईएल अपने आयकर रिटर्न में 7.69 प्रतिशत के बजाय 15 प्रतिशत की ऊंची दर से मूल्यह्रास का दावा कर रही है। कैग ने पाया है कि आरआईएल ने एडी हासिल कर उक्त शर्त का उल्लंघन किया।
इसके अनुसार कार्यक्रम शर्तों का उल्लंघन कर आईआरईडीए ने अगस्त 2010 से दिसंबर 2012 के दौरान आरआईएल को 22.49 करोड़ रुपये के जीबीआई का वितरण किया।
हालांकि, आरआईएल के आग्रह पर आईआरईडीए ने मंत्रालय (एमएनआरई) को सूचित किया कि डेवलपर ने हल्फनामा दिया है कि 31 मार्च 2014 से पहले उसके आयकर रिटर्न (आकलन वर्ष 2011-12 व 2012-13) में मूल्यह्रास दर का दावा 15 प्रतिशत से घटाकर 7.69 प्रतिशत कर दिया जाएगा।
कंपनी ने सितंबर 2013 तक 7.79 करोड़ रुपये का भुगतान और जारी करने पर विचार का आग्रह किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि मंत्रालय ने आरआईएल के इस आग्रह पर कोई कार्रवाई नहीं की और (जनवरी 2013 से दिसंबर 2014 के लिए) 18.79 करोड़ रुपये के दावे लंबित है। मंत्रालय ने जुलाई 2015 में आईआरईडीए के उत्तर की पुष्टि की और कहा कि अनुपालन नहीं होने के चलते आरआईएल के और भुगतान जारी करने के आग्रह पर विचार नहीं किया गया।
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