आम आदमी पार्टी ने जारी किया अरविंद केजरीवाल का पूरा भाषण
| आम आदमी पार्टी में पिछले करीब डेढ़ महीने से चल रही आंतरिक कलह शनिवार को नाटकीय अंदाज में अंजाम पर पहुंच गई। बंद दरवाजों के पीछे मीटिंग में क्या हुआ, क्या नहीं…इसकी खबरें छन-छन कर आती रहीं। यह भी चर्चा खास रही कि आखिर अरविंद केजरीवाल ने मीटिंग में क्या कहा। अटकलों पर लगाम लगाने के लिए आम आदमी पार्टी ने खुद ही रविवार दोपहर अरविंद केजरीवाल की स्पीच का 45 मिनट का विडियो यूट्यूब पर डाल दिया। इस मीटिंग में अरविंद केजरीवाल ने योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण और पार्टी के बारे में क्या कहा, खुद पढ़िए- ‘दोस्तों, दिल्ली के चुनाव में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत हुई है। यह आप लोगों की वजह से हुई है, इसके लिए आप सभी का दिल से धन्यवाद देता हूं। यह भारत के इतिहास में दूसरी बार है जब किसी पार्टी को इतनी सीटें मिली हैं। आप लोगों को याद होगा कि लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी की क्या स्थिति थी। जहां सड़क पर निकलते थे, वहां गालियां पड़ती थीं। मैंने खुद यह झेला है। वहां से उठकर 67 सीटें जीतना कोई हंसी-खेल नहीं था। दिल्ली चुनाव के बाद बीजेपी और कांग्रेस बुरी तरह घबरा गई थीं। उन्हें ज्यादा दिन चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ी। मैं यह सोच रहा था कि पिछले डेढ़ महीने में जो कुछ हुआ है, उसका फायदा किसको मिला। क्या अरविंद केजरीवाल मजबूत हुआ? क्या आम आदमी पार्टी मजबूत हुई? क्या प्रशांत भूषण मजबूत हुए? क्या योगेंद्र यादव मजबूत हुए? इससे क्या इंटरनल डेमोक्रेसी आ गई? स्वराज आ गया? हम सब बदनाम हो गए। जो कुछ हुआ, उससे दूसरी पार्टियों को लगेगा कि अगर इसे ही आंतरिक लोकतंत्र कहते हैं तो तौबा-तौबा ऐसे लोकतंत्र से। अगर इसी को स्वराज कहते हैं तो भगवान बचाए ऐसे स्वराज से। इससे मोदी को फायदा हुआ। इससे बीजेपी, कांग्रेस और अंबानी को फायदा हुआ। मैं आज तक चुप था, बाहर कुछ नहीं बोला मैंने। आज मैं कुछ कड़वी बातें कहूंगा, इसके लिए पहले ही मांफी मांग रहा हूं। पिछले एक साल से यह सब कुछ हो रहा है। जब पिछली बार मैं सीएम था तो उस समय योगेंद्र यादव के एक पीए हुआ करते थे, विजय रमन। उन्होंने सत्या नाम के एक वॉलेंटियर को फोन किया, वह आपका इंटरव्यू करना चाहते हैं। वहां उन्होंने सत्या को बताया कि क्योंकि केजरीवाल अब सीएम बन गए हैं और उनकी राजनीतिक समझ अच्छी नहीं है, इसलिए आम आदमी पार्टी का संयोजक योगेंद्र यादव को बनाया जा रहा है। उनके सचिवालय के लिए ही इंटरव्यू किये जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव के बाद मुझपर जमकर हमले किए गए। मेरे अपनों ने ही हमले किए, मेरे व्यक्तित्व, कार्यशैली और नेतृत्व पर हमले किए गए। मुझे मेल किए गए और वही मेल मीडिया को भेज दिए गए। जून के पहले हफ्ते में शायद हमारी नैशनल काउंसिल की मीटिंग हुई। कई अखबारों में यह बात आई कि मैं वहां टूट गया था, मैं वहां पर रोया। यह बात सही है। मैं टूट गया था। मैं मोदी, वाड्रा से लड़ सकता हूं लेकिन मैं यहां योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण से नहीं लड़ सकता। इतना कहकर मैं वहां से चला आया। उस रात मैं अपनी फैमिली से बात की। मैंने फैसला किया कि अब मैं राजनीति नहीं करूंगा। मेरी फैमिली भी तैयार हो गई। अगली सुबह ही प्रशांत और योगेंद्र घर आ गए, उनके बहुत मनाने पर मैं तैयार हो गया। मैंने दोनों से कहा कि दिल्ली चुनाव के फैसला लेने का अधिकार अरविंद केजरीवाल के पास होगा। लेकिन, दिल्ली के चुनाव में हमें हराने की पूरी साजिश रची गई। आवाम का मामला निकलकर आया, प्रशांतजी ने कई बार लोगों से बोला कि हम चाहते हैं कि पार्टी चुनाव हार जाए, तभी अरविंद को सबक मिलेगा। रोज धमकियां दी जाती थीं कि अगर यह नहीं किया तो प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पार्टी को बर्बाद कर देंगे, अगर यह नहीं किया तो प्रेस कॉन्फ्रेंस करके पार्टी को बर्बाद कर देंगे। यह तो जनतंत्र नहीं है। यह तो स्वराज नहीं है। हमारे 15 सीनियर लीडर देशभर से दिल्ली आए और प्रशांतजी और शांतिजी को मनाते रहे कि पार्टी को बर्बाद मत कीजिए। अरविंद ने कहा कि मैं यहां सत्ता लेने नहीं आया, मैंने सीएम की पोस्ट छोड़ दी थी। लोग मुझे जिद्दी कह सकते हैं लेकिन बीजेपी और कांग्रेस वाले भी यह नहीं कह सकते कि केजरीवाल बेईमान है। अपने ही लोगों ने मुझपर शक किया। मैंने समझौते कर लिए। मैंने अपने दोस्तों को टिकट नहीं दिया। कुछ लोग कहते हैं कि जीत और हार से फर्क नहीं पड़ता, मैं कहता हूं कि हम जीतने ही आए हैं। जिनको जीतने की राजनीति करनी है, वे हमारे साथ चलें। मैंने ही 3 लाख खर्च करके शीला दीक्षित को हराया था। जिन 12 प्रत्याशियों पर इन लोगों ने आरोप लगाए, उसमें से 10 पर कोई इल्जाम सही साबित नहीं हुआ। फिर भी इन लोगों ने टाइम्स ऑफ इंडिया को उनके नाम दे दिए, उनके खिलाफ कैंपेन किया। हमारे खिलाफ स्टोरीज प्लांट किया गया। एक अखबार में मेरे खिलाफ आधे पेज की स्टोरी छपी। एक वॉलेंटियर ने योगेंद्र जी को फोन करके स्टोरी के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मैं ऐसे किसी पत्रकार को नहीं जानता। उसके बाद उस पत्रकार से हमने बात की और उनकी बात रेकॉर्ड कर ली गई। उसने बताया कि योगेंद्र जी ने पांच पत्रकारों को मीटिंग पर बुलाया था और केजरीवाल के खिलाफ भरा था। टीवी चैनल्स के संपादकों ने मुझसे कहा है कि योगेंद्र यादव ने मेरे खिलाफ भरा है। कई वॉलेंटियर्स दिल्ली आना चाहते थे, उन्हें रोका गाया। कई लोग चंदा देना चाहते थे, उन्हें चंदा देने से रोका गया। हद तो तब हो गई जब हमारी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि मेरी पहली पसंद किरण बेदी हैं, दूसरी अजय माकन हैं और तीसरे अरविंद केजरीवाल। मैं जानना चाहता हूं कि तो फिर आप इस पार्टी में क्यों हैं। इसके बाद योगेंद्र और प्रशांत के खिलाफ नारेबाजी शुरू हो गई। इसी दौरान माहौल गर्म हो गया। अरविंद ने कहा कि हमें शांति से एक-दूसरे को सुनना पड़ेगा। पार्टी को हराने के लिए सारी कोशिशें की गई। जब मैं बेंगलुरु से दिल्ली से लौट रहा था तभी प्रशांतजी ने मुझे मेसेज भेजा। मैंने भी अपने एक साथी से कहा कि मिलना तो मैं भी चाहता हूं लेकिन डर लगता है कि मैं कुछ भी कहूंगा ये लोग जाकर टीवी पर बता देंगे। एयरपोर्ट पहुंचा ही था कि टीवी पर प्रशांत भूषण मीडिया को बता रहे थे कि मैंने तो अरविंद को मेसेज भेजा है, देखो जवाब देते हैं कि नहीं। इसका मतलब आपका मकसद मिलना नहीं, दुनिया को दिखाना था। इससे कुछ नहीं हुआ, बस केजरीवाल कमजोर हो गया। ये तो मुझे और पार्टी को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। बेंगलुरु से लौटते ही मैंने रात को अपनी टीम के लोगों को बुलाया। मैंने 11.30 बजे रात को मैंने टीम को योगेंद्र भाई के घर भेजा कि जाओ बात करके आओ। तब से परसों रात तक कोशिश करते रहे कि बात सुलझ जाए। उन्होंने पहले कहा कि हमारे पांच मुद्दे मान लो, हम सारे पदों से इस्तीफा दे देंगे। ये दिखावा था। कभी कोई कहता है कि पार्टी ठीक कर लो, तो पार्टी छोड़ देंगे। टीवी में ये लोग कह रहे थे स्टिंग फर्जी हैं और अंदर मेल कर रहे थे कि इनकी जांच कराओ। अरविंद ने आरोप लगाया कि योगेंद्र की ओर से कहा गया कि ये तो बार्गेनिंग कर रहे थे, हमें हरियाणा दे दो। उसके बाद कुछ और कहने लगे। आखिर में, ये लोग अपनी हर बात से मुकर गए। मैं प्रशांतजी के एक इशारे के ऊपर जेल चला गया। इस पार्टी को हमने अपने खून से सींचा है। मैं आज हार मानता हूं, आप जीत गए। मैं अब इस लड़ाई को और नहीं बढ़ाना चाहता हूं। ये न स्वराज है न आंतरिक लोकतंत्र हैं। आज या तो आप उन्हें चुन लीजिए या मुझे चुन लीजिए। अगर आप इनको चुनते हैं, तो मैं चारों पदों से इस्तीफा पंकज के पास रख जा रहा हूं। मैं अपनी लड़ाई एक आम कार्यकर्ता के रूप में जारी रखूंगा।’ अंत में अरविंद ने एक जरूरी मीटिंग में जाने का हवाला दिया और गोपाल राय को सभा की अध्यक्षता करने का प्रस्ताव रखकर वहां से चले गए।
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