आपातकाल और शोले का संबंध

साप्ताहिक आउट लुक के ताजे अंक में लंदन में रहने वाले स्काॅलर संदीप्तो दासगुप्ता ने ‘शोले’ और आपातकाल पर विलक्षण लेख लिखा है, जिसे आप फिल्म के साथ जुड़ी सामाजिक प्रतिबद्धता का अभिनव लेख मान सकते हैं।   यह लेख न केवल ‘शोले’ की समीक्षा है वरन् भारत में गणतांत्रिक व्यवस्था पर भी प्रकाश डालता है। सिनेमा और राजनीति दोनों ही का आधार सामूहिक अवचेतन है। जो युवा फिल्म या राजनीतिक पत्रकारिता के क्षेत्र में जाना चाहते हैं, उनके लिए पथ प्रदर्शक लेख है।   आपातकाल शोले के प्रदर्शन के छह सप्ताह पूर्व घोषित हुआ था परंतु 40 वर्ष पूर्व दोनों घटनाओं में केवल समय की समानता नहीं, कुछ और भी है। ‘शोले’ में द्वंद्व पूर्व पुलिस अफसर और डाकू गब्बर सिंह का है। चम्बल में डाकू समस्या की जड़ में आर्थिक असमानता व घोर जातिवाद तथा मंत्री-पुलिस की भ्रष्ट जुगलबंदी है। परंतु गब्बर के साथ यह सामाजिक पुलिस- मंत्री सहयोग नहीं हैं और वह धोती की जगह जीन्स पहनता है परंतु गांव वालों की तरह तंबाकू खाता है।   वह उस अराजकता का प्रतीक है जो व्यवस्था को तोड़ना चाहती है, सामाजिक…

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