अमेरिका का भारत से मजबूत संबंधों का हवाला, चीन-पाकिस्तान को पढ़ाया पाठ

वॉशिंगटन
दक्षिण एशिया के अपने दौरे से पहले अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत की जमकर तारीफ की है। अमेरिका ने भारत के साथ मजबूत संबंधों का हवाला देते हुए चीन और पाकिस्तान को खूब सुनाया भी है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने जहां पाकिस्तान पर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बनाया है, वहीं चीन को अंतरराष्ट्रीय कानूनों, नियमों को तोड़ने का दोषी बताया है।

टिलरसन ने अपनी दक्षिण एशिया की यात्रा से पहले बुधवार को अमेरिका और भारत के संबंधों पर नीतिगत टिप्पणियां कीं। टिलरसन ने भारत के साथ संबंधों को और भी मजबूत करने की वकालत की। अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि अमेरिका और भारत सुरक्षा, मुक्त व्यापार और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के साझा लक्ष्य पर काम कर रहे हैं। टिलरसन ने कहा कि साउथ चाइना सी पर चीन ने अपने आक्रामक कदमों से उन अंतरराष्ट्रीय नियमों, मूल्यों को चुनौती दी है, जिसका अमेरिका और भारत, दोनों ही सम्मान करते हैं।

टिलरसन ने कहा कि भारत में 500 अमेरिकी कंपनियां काम कर रही हैं। बेंगलुरु और सिलिकॉन वैली के बीच टेक्नॉलजी और विचारों के आदान-प्रदान से दुनिया में बदलाव हो रहा है। अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि इंडो-पसिफिक क्षेत्र में शांति और स्थायित्व के लिए भारत के साथ सहयोग को और आगे बढ़ाने की जरूरत है। टिलरसन ने कहा कि पिछले दशक में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को लेकर अमेरिका और भारत के संबंधों में काफी मजबूती आई है।

पाकिस्तान और चीन को लताड़ा
टिलरसन ने एकतरफ तो भारत की तारीफ की, वहीं चीन और पाकिस्तान को लताड़ भी लगाई है। टिलरसन ने कहा कि अमेरिका को उम्मीद है कि पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगा ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी स्थिति सुधरे और इलाके में शांति आए।

टिलरसन ने चीन पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत की तुलना में चीन ने अपनी जिम्मेदारियों को कमतर तरीके से निभाया। टिलरसन ने भारत-चीन के डोकलाम विवाद के संदर्भ में कहा कि चीन ने अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन किया जबकि भारत ने कायदे के तहत दूसरे देशों की संप्रभुता का भी ख्याल रखा।

इसके अलावा टिलरसन ने दक्षिणी चीन समुद्र विवाद में भी आक्रामक रुख के चलते चीन की आलोचना की। अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि चीन के आक्रामक कदमों ने अंतरराष्ट्रीय कानून और नियमों को चुनौती दी है। भारत और अमेरिका हमेशा इनके लिए खड़े रहे हैं। हालांकि टिलरसन ने चीन के साथ कंस्ट्रक्टिव संबंधों की वकालत भी की, लेकिन साफ कर दिया कि पड़ोसी और अमेरिका के साथी मुल्कों की संप्रभुता को चुनौती देने के उसके कदम को नजरअंदाज भी नहीं किया जाएगा।

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