अमृत योजना के तहत 3 साल में बजट का 1% भी नहीं हुआ खर्च
|ग्रामीण क्षेत्रों में सुधार और 500 शहरों में नागरिक सुविधाएं मुहैया करने की मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी पहल ‘अटल मिशन फॉर रिजॉल्यूशन ऐंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन’ (अमृत) में अब तक कुल लागत का केवल 0.38 पर्सेंट खर्च हुआ है। इस योजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 जून 2015 को लॉन्च किया था। अमृत पहल के जरिए मार्च 2020 तक 1.39 करोड़ वाटर कनेक्शन, बेहतर सीवरेज, स्टॉर्म जल निकासी परियोजना, पार्क और हरियाली के साथ एलईडी स्ट्रीटलाइट मुहैया कराने का वादा किया गया था। इसकी कुल लागत ₹77,640 करोड़ रुपये तय की गई थी, जिसमें केंद्र सरकार 35,990 करोड़ रुपये की मदद करने वाली थी।
आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इस योजना के तहत 296 करोड़ रुपये की लागत (मिशन की कुल लागत का 0.38 पर्सेंट) से 365 परियोजनाओं को पूरा किया जा चुका है। करीब आधे प्रोजेक्ट्स पर काम हो रहा है, जिनका खर्च 39,817 करोड़ रुपये है।
इस मिशन के अंतर्गत पांच प्रमुख क्षेत्र हैं, जहां पहली प्राथमिकता वाटर कनेक्शन और जल आपूर्ति क्षमता में बढ़ोतरी है। इस परियोजना का करीब 50 पर्सेंट खर्च पानी की सप्लाई वाले सेक्टर के लिए आवंटित किया गया है। अब तक ₹112 करोड़ रुपये के 42 प्रॉजेक्ट्स को पूरा किया गया है। इस तरह 0.29 पर्सेंट काम हुआ। सबसे बड़ी चुनौती मार्च 2020 तक सभी घरों में पानी की सप्लाई पहुंचाने की थी। इकनॉमिक्स टाइम्स ने इसके लिए आरटीआई के तहत सूचना के लिए अनुरोध किया था।
हालांकि, मंत्रालय 1.39 करोड़ रुपये के ऑल-इंडिया टारगेट के मुकाबले अब तक बांटे गए वाटर कनेक्शन के आंकड़े नहीं दे सका। उसने स्टेट-वाइज टारगेट तो दिया, लेकिन उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि वास्तव में कितने लोगों को कनेक्शन दिया गया था। मंत्रालय के अपुष्ट आंकड़ों के मुताबिक, दिसंबर 2017 तक पांच लाख कनेक्शन दिए गए थे, जो टोटल टारगेट का 4 पर्सेंट है।
मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि प्रोग्रेस की पोर्टल, वीडियो कॉन्फ्रेसिंग और फील्ड विजिट के जरिए लगातार निगरानी की जा रही है। इसके साथ ही मंत्रालय ने अमृत के अंतर्गत आने वाली सभी परियोजनाओं की सैटेलाइट के जरिए निगरानी का फैसला किया है। हालांकि, मंत्रालय का कहना है कि प्रॉजेक्ट्स बड़े हैं और उन्हें पूरा करने के लिए ज्यादा समय की जरूरत है। मंत्रालय ने पहले तीन वर्षों में मिशन पीरियड (2015-2020) के लिए स्टेट प्रपोजल को मंजूरी दे दी है, फिर भी प्राइवेट इनवेस्टमेंट का कोई रिकॉर्ड नहीं है।
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