अपने संसदीय सचिवों को बचा लेगी दिल्ली सरकार!
|दिल्ली के विपक्षी दल इस उम्मीद में लगे हैं कि सरकार के 21 संसदीय सचिवों (विधायकों) की सदस्यता जल्द रद्द हो जाएगी, और दिल्ली में विधानसभा के उपचुनाव होंगे। लेकिन इन सबके उलट दिल्ली की आप सरकार आश्वस्त है और उसका दावा है कि वह अपने इन सचिवों का कार्यकाल पूरा करवा ले जाएगी। सरकार मानती है कि उसके ‘तरकश में कई तीर’ हैं, जिसके बलबूते उसके संसदीय सचिवों का कुछ नहीं बिगड़ पाएगा।
केंद्रीय चुनाव आयोग में कल भी इन 21 संसदीय सचिवों की सदस्यता को लेकर सुनवाई थी। जिसमें यह कहकर सचिवों के वकीलों ने सुनवाई आगे बढ़वा ली कि इस मामले में उन्हें हाल ही में आए हाई कोर्ट के आदेश की कॉपी का अध्ययन करना है। कुछ विधायक यह कहकर नहीं आए कि उन्हें बहुत जरूरी काम है। जिसके बाद आयोग ने इन विधायकों को अपना पक्ष रखने के लिए 14 अक्टूबर तक का वक्त दे दिया है। सूत्र बताते हैं कि असल में यह सरकार की एक रणनीति का हिस्सा है। पिछली चार सुनवाई इसी तरह के ‘तर्कों’ के आधार पर सरकार के वकीलों ने टलवा ली है। सरकार इस बात से आश्वस्त भी हैं कि अगर आयोग विधायकों की सदस्यता रद्द करने के रिपोर्ट तैयार करने की कवायद करता है तो भी उसके पास कई विकल्प हैं।
दिल्ली सरकार के मीडिया सलाहकार नागेंद्र शर्मा के अनुसार पहली बात तो यह है कि चुनाव आयोग कोर्ट नहीं है। वह राष्ट्रपति के निर्देश के अनुसार सुनवाई कर रहा है। हमें उस पर कोई आपत्ति नहीं है। लेकिन अगर आयोग का फैसला हमारे विधायकों के खिलाफ जाता है तो हमें सुप्रीम कोर्ट में जाने का अधिकार है। अब हमारे वकीलों ने कई दस्तावेज व अन्य कागजात तैयार कर लिए हैं कि हम सुप्रीम कोर्ट को यह बता पाने में सफल हो जाएंगे कि सरकार की ओर से बनाए गए संसदीय सचिव अस्तित्व में आए ही नहीं और और न ही उन्होंने इसका कोई लाभ उठाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार के शासनकाल में भी ऐसे पद होते रहे हैं और वहां तो उसका खूब लाभ उठाया गया, ऐसे में हमें किस प्रकार दोषी ठहराया जा सकता है।
सरकार के वकीलों के पास दूसरा तर्क यह है कि जब उसने पिछले साल मार्च माह में अपने इन विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था, उस वक्त उसने उपराज्यपाल नजीब जंग से इसकी इजाजत नहीं ली थी, इसलिए ये पद अस्तित्व में ही नहीं आए और न ही उन्होंने कोई लाभ उठाया। तकनीकी तौर पर शुरू से ही इनकी नियुक्तियां अवैध हो गई हैं। सरकार के पास अन्य तर्क यह भी है कि जब पिछले दिनों हाई कोर्ट ने संसदीय सचिवों की नियुक्ति को ही खारिज कर दिया तो उसका सीधा सा अर्थ यह है कि उन्हें पहले दिन से ही खारिज मान लिया गया है। ऐसे में जब दिल्ली सरकार में यह पद ही नहीं है तो फिर चुनाव आयोग ‘किसकी’ सुनवाई कर रहा है। इस तरह के कई ‘तीर’ सरकार के वकीलों ने जमा कर लिए हैं। जिन्हें आगामी सुनवाई में ‘छोड़ा’ जाता रहेगा।
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