मोसुल में भले हार गया हो ISIS, लेकिन इराक पर इसका खतरा बरकरार

बगदाद
इस्लामिक स्टेट (ISIS) के हाथों जुलाई 2014 में मोसुल हारने के बाद अक्टूबर 2016 में इसे दोबारा हासिल करने का सैन्य अभियान शुरू हुआ। 9 महीने तक चले भीषण सैन्य संघर्ष के बाद रविवार को इराकी गठबंधन सेना ने मोसुल से ISIS का खात्मा कर वापस इसे अपने कब्जे में ले लिया। इसी शहर में ISIS के सरगना अबू बकर अल-बगदादी ने खुद को मुसलमानों का नया खलीफा घोषित किया था। उसके मुताबिक मोसुल उसके ‘साम्राज्य’ की राजधानी थी। अब जब वही मोसुल ISIS के हाथ से निकल गया है, तो यह सवाल पूछा जाना स्वाभाविक है कि क्या इसके साथ ही साथ ISIS को भी हारा हुआ समझ लेना चाहिए। यह सच है कि ISIS के लिए यह एक बहुत बड़ी हार है, लेकिन यह झटका उसे बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा। मोसुल में मिली जीत को किसी भी तरह से इराक में ISIS के अस्तित्व का अंत नहीं माना जा सकता है।

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अपनी आधी से ज्यादा जमीन गंवा चुका है ISIS
हजारों इराकी सैनिकों और पश्चिमी गठबंधन सेना के लड़ाकू विमानों व विशेष दस्तों की मदद से मोसुल में जीत हासिल हुई। शहर पर तो जीत मिल गई है, लेकिन यह शहर किसी भी सूरत में पहले वाला मोसुल नहीं रहा। 9 महीने लंबी चली इस जंग में मोसुल बुरी तरह बर्बाद हो गया है। रक्षा विशेषज्ञ और अमेरिकी स्पेशल फोर्सेस के कर्नल (रिटायर्ड) डेविड विटी के मुताबिक, ‘ISIS की प्रतिष्ठा में यह एक बड़ा दाग है।’ अपने सबसे सफल दौर में ISIS के कब्जे में दक्षिणी कोरिया या फिर एक जॉर्डन के बराबर का भूभाग था। इन इलाकों में रहने वाली 1 करोड़ से भी ज्यादा आबादी उसके नियंत्रण में थी। अब ISIS अपनी आधी से ज्यादा जमीन और वहां रहने वाली तीन चौथाई आबादी गंवा चुका है। मोसुल के बाद ISIS का दूसरा सबसे बड़ा गढ़ सीरिया का रक्का शहर है। वहां पर भी उसके खिलाफ सैन्य अभियान शुरू हो चुका है। उम्मीद है कि जल्द ही रक्का से भी ISIS का सफाया कर दिया जाएगा।

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मोसुल की जीत से इराक में ISIS का अस्तित्व खत्म नहीं हुआ
‘बरकरार रहने और विस्तार करने’ की रणनीति रखने वाला ISIS 2015 से लेकर अब तक अपनी खलीफत के आसपास का कोई भूभाग नहीं जीत सका है। इसके हजारों आतंकवादी मारे जा चुके हैं। एक समय था जब ISIS से प्रभावित होकर बड़ी संख्या में विदेशी जिहादी इराक और सीरिया आ रहे थे, लेकिन अब इस चलन में भी काफी गिरावट आई है। इसके बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि मोसुल की जीत को ISIS के खिलाफ निर्णायक जीत नहीं कहा जा सकता है। इंस्टिट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ वॉर में इराकी मामलों के विशेषज्ञ पैट्रिक मार्टिन कहते हैं, ‘मोसुल की जीत को ISIS के ताबूत में आखिरी कील की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। उसके कब्जे में अब भी एक बड़ा भूभाग है। सीरिया में उसके पास अच्छा-खासा शहरी इलाका है।’ मार्टिन का कहना है कि अगर सेना ISIS के खिलाफ मिली इस जीत को लेकर सावधान नहीं रही, तो यह आतंकवादी संगठन यहां दोबारा खड़ा हो सकता है।

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पलटवार करने में जी-जान लगा देगा ISIS
जानकारों का यह भी मानना है कि अपने ‘खलीफत’ के बचे हिस्सों को बचाने के लिए ISIS अपनी रणनीति बदलकर और आक्रामक हो सकता है। संभावना है कि वह गुरिल्ला युद्ध और बमबारी को ज्यादा इस्तेमाल में लाए। विटी कहते हैं, ‘आने वाले समय में खुलेआम बड़े इलाकों को अपने कब्जे में लेने की जगह ISIS इराक के अंदर आतंकवाद और विद्रोह को बढ़ाने पर जोर देगा।’ इससे पहले भी जंग के मैदान में हारने पर ISIS बड़े आतंकी हमलों को अंजाम दे चुका है। पिछले साल बगदाद में हुए बम धमाके में 320 से ज्यादा लोग मारे गए थे। फजुल्लाह में हारने के बाद ISIS ने इस हमले को अंजाम दिया था। जब इराकी फौज ने मोसुल में सैन्य कार्रवाई शुरू की थी, उस समय भी ISIS ने किरयुक में एक बड़ा हमला किया था। अब चूंकि उसका ‘साम्राज्य’ दांव पर लग गया है, ऐसे में पूरी आशंका है कि ISIS दोबारा इसी तरह पलटवार करने की कोशिश करेगा। इराकी सरकार का दावा कि इराक के अंदर ISIS को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है, इसे गलत साबित करने के लिए यह आतंकवादी संगठन हर मुमकिन कोशिश करेगा। यही वजह है कि विशेषज्ञ आने वाले सालों में इराक की स्थिति को लेकर काफी सशंकित हैं।

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