BRICS घोषणापत्र में लश्कर, जैश की निंदा को भारत की कूटनीतिक जीत बताना हास्यास्पद: चीन

पेइचिंग
डोकलाम में भारत की कूटनीतिक जीत से बौखलाया चीनी मीडिया अब ब्रिक्स घोषणापत्र के मुद्दे पर भारत को निशाना बनाने में जुट गया है। ब्रिक्स घोषणापत्र में पहली बार पाकिस्तानी आतंकी संगठनों की कड़ी निंदा को चीन अब भी नहीं पचा पा रहा है। आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान की किरकिरी के बाद अब चीन अपने सदाबहार दोस्त के बचाव में खुलकर उतर गया है और ब्रिक्स घोषणापत्र को भारत की कूटनीतिक जीत बताए जाने को हास्यास्पद बताया है।

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चीन की आनाकानी के बाद भी BRICS के श्यामन घोषणापत्र में पहली बार आतंकवाद और खासकर पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन की कड़ी निंदा की गई। इस घोषणापत्र के बाद अब चीन की असहजता खुलकर सामने आ गई है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने शनिवार को अपनी संपादकीय में लिखा है कि लश्कर और जैश का नाम घोषणापत्र में शामिल किए जाने को भारत की कूटनीतिक जीत बताना हास्यास्पद है।

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संपादकीय में लिखा गया है कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों की पहली बार ब्रिक्स घोषणापत्र में निंदा को भारतीय मीडिया ‘भारतीय कूटनीति की जीत’ के तौर पर बता रहा है। अखबार ने लिखा है कि ऐसा निष्कर्ष हास्यास्पद है और इसमें रिसर्च की कमी के साथ-साथ भारत के आत्मप्रचार को दिखाता है। संपादकीय में लिखा गया है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा को संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने आतंकी समूहों की सूची में डाल रहा था। अखबार ने लिखा है कि चीन इन संगठनों को श्यामन घोषणापत्र में शामिल करने के लिए सहमत हुआ और यह पाकिस्तान के आधिकारिक रुख के अनुकूल है।

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दरअसल ब्रिक्स घोषणापत्र में पाकिस्तान से सक्रिय आतंकी संगठनों का जिक्र किए जाने से चीन के सदाबहार दोस्त पाकिस्तान की किरकिरी लाजिमी थी। शायद इसी दबाव का असर था कि पाकिस्तानी विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ को यह स्वीकार करना पड़ा कि अगर जैश और लश्कर जैसे आतंकी संगठनों पर लगाम नहीं लगाई गई तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान शर्मिंदगी का सामना करता रहेगा। इतना ही नहीं, आनन-फानन में ख्वाजा आसिफ चीन पहुंच गए। आतंकवाद पर चीन का दोहरापन इसी से जाहिर हो रहा है कि अब वह पाकिस्तान को भरोसा दिलाने की कोशिश में है कि श्यामन घोषणापत्र उसके खिलाफ नहीं है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की संपादकीय भी इसी की एक कड़ी है।

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संपादकीय में पाकिस्तान को चीन का सदाबहार दोस्त बताते हुए कहा गया है कि दोनों के बीच आपसी रणनीतिक विश्वास अटूट है। अखबार ने लिखा है कि भारत के दबाव के बावजूद चीन पाकिस्तान के साथ रणनीतिक सहयोग को आगे बढ़ाता रहेगा। संपादकीय में लिखा गया है कि काउंटर-टेररेजम के मुद्दे पर पाकिस्तान की जरूरत को चीन से बेहतर कोई भी देश नहीं समझ सकता।

बता दें कि ब्रिक्स के श्यामन घोषणापत्र में साफ लिखा है, ‘हम ब्रिक्स देशों समेत पूरी दुनिया में हुए आतंकी हमलों की निंदा करते हैं। हम सभी तरह के आतंकवाद की निंदा करते हैं, चाहे वो कहीं भी घटित हुए हों और उसे किसी ने अंजाम दिया हो। इनके पक्ष में कोई तर्क नहीं दिया जा सकता। हम क्षेत्र में सुरक्षा के हालात और तालिबान, आईएसआईएस, अलकायदा और उसके सहयोगी, हक्कानी नेटवर्क, लश्कर-ए-तैयबा, जैश ए मोहम्मद, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान और हिज्ब-उत-ताहिर द्वारा फैलाई हिंसा की निंदा करते हैं।’

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खास बात यह है कि चीन ने ब्रिक्स सम्मेलन से ठीक पहले कहा था कि भारत को पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों के मसले को इस मंच पर नहीं उठाना चाहिए। चीन ने कहा था पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर भारत की चिंताओं पर ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में चर्चा नहीं होगी, इसके बावजूद न सिर्फ शिखर सम्मेलन में आतंकवाद पर चर्चा हुई बल्कि घोषणापत्र में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों की कड़ी निंदा हुई। यह हर लिहाज से भारत की एक बड़ी कूटनीतिक जीत है। घोषणापत्र से चीन का असहज होना भी स्वाभाविक है क्योंकि वह जैश-ए-मोहम्मद के सरगना पर पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया पर तकनीकी तौर पर रोक लगाता रहा है। अब उसपर आगे ऐसा न करने का नैतिक दबाव तो होगा ही।

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