BHU: एक साल में पांच बड़े बवाल, जानिए क्या है वजह

शैलेश कुमार शुक्ल, वाराणसी
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) इन दिनों सुर्खियों में है। एशिया के इस सबसे बड़े आवासीय विश्वविद्यालय में आए दिन हिंसक घटनाएं हो रही हैं। ताजी घटना में गुरुवार की रात बीएफए की छात्रा के साथ छेड़खानी के मामले ने उग्र रूप ले लिया और स्टूडेंट्स ने जमकर बवाल किया। स्टूडेंट्स के इस आंदोलन को खत्म कराने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज और हवाई फायरिंग करनी पड़ी। बीएचयू में पिछले नौ महीने में पांच बार बवाल हो चुके हैं। आए दिन हो रही इन हिंसक घटनाओं पर नवभारत टाइम्स ने बीएचयू को करीब से समझने वालों से बात की। जानिए, क्या है इनकी राय…

छात्रसंघ का न होना
समाजवादी चिंतक विजय नारायण सिंह ने कहते हैं कि बीएचयू के आए दिन अशांत होने की सबसे बड़ी वजह छात्रसंघ का न होना है। उन्होंने कहा, बीएचयू में पिछले 20 साल से छात्रसंघ नहीं है। केंद्र की पिछली कांग्रेस और वर्तमान भाजपा सरकार ने इस पर कभी ध्यान नहीं दिया। छात्रों को अपनी बात विश्वविद्यालय प्रशासन से कहने के लिए कोई चैनल नहीं है। इससे छोटी छोटी घटनाएं हिंसक रूप ले ले रही हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बीएचयू के छात्रों को पकड़ने के लिए पुलिस बीएचयू परिसर में घुसना चाहती थी लेकिन तत्कालीन वाइस चांसलर और बाद में भारत के राष्ट्रपति बने डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने विश्वविद्यालय के गेट को बंद करा दिया था। हिंसा की एक वजह विश्वविद्यालय के सुरक्षा गार्ड हैं, जो छात्रों के साथ बदतमीजी के साथ बात करते हैं।

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स्टूडेंट्स के बीच जाएं वाइस चांसलर
बीएचयू में शोध कर रहे एक छात्र रमेश (बदला हुआ नाम) भी विजय नारायण की बात से इत्तेफाक रखते हैं। रमेश कहते हैं कि पिछले दो-तीन साल में हो रही घटनाओं को देखकर लग रहा है कि यहां छात्रसंघ की जरूरत है। बीएचयू में कुलपति और प्रशासनिक अधिकारियों का स्टूडेंट्स के साथ कोई संवाद नहीं होता है। इससे मामूली घटनाएं भी हिंसक रूप ले ले रही हैं। उन्होंने कहा कि वाइस चांसलर को चाहिए कि वे खुद स्टूडेंट्स के बीच जाएं और उनकी समस्याओं को समझें। इससे संवाद बढ़ेगा और घटनाएं रूकेंगी।

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पूरा विवाद प्रायोजित
बीएचयू के पुराछात्र और NSUI के अखिल भारतीय सचिव रह चुके रत्नाकर त्रिपाठी कहते हैं कि संवादहीनता एक बड़ी वजह है लेकिन इन घटनाओं के पीछे एक सोची समझी रणनीति काम कर रही है। उन्होंने कहा, ‘हमें चाहिए आजादी जैसे नारे बीएचयू में नहीं लगते। ऐसे नारे लगाने वाले लोग पिछले एक साल से जेएनयू और डीयू से यहां आ रहे हैं और स्टूडेंट्स को भड़का रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह बीएचयू के 42 हजार स्टूडेंट्स हैं। बीएचयू में 12 राज्यों और 60 देशों के स्टूडेंट पढ़ते हैं। अगर यहां कुछ होता है तो मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, यूपी जैसे राज्यों में इसका असर होता है। इसलिए कुछ लोग सुनियोजित तरीके से स्टूडेंट्स को भड़का रहे हैं। यह पूरा विवाद प्रायोजित है।’

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कार्यकारिणी परिषद लोकतांत्रिक नहींं
वहीं बीएचयू के पूर्व पीआरओ डॉक्टर विश्वनाथ पांडे कहते हैं कि बीएचयू की कार्यकारिणी परिषद लोकतांत्रिक तरीके से नहीं चुनी जाती, जो समस्या की एक बड़ी वजह है। कार्यकारिणी परिषद में कुछ खास लोगों को नियुक्त कर दिया जाता है जो सही सलाह नहीं देते हैं। इससे सामंतवादी मूल्यों को बढ़ावा मिला है। उन्होंने कहा कि अगर कार्यकारिणी परिषद लोकतांत्रिक होती तो छात्र आसानी से अपनी बात वाइस चांसलर और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों तक पहुंचा पाते। इसके अलावा बीएचयू की सलाकार समिति को भी बहाल करने की जरूरत है।

बीएचयू में इस साल की बड़ी घटनाएं
दो फरवरी – विश्वनाथ मंदिर के पास बीएससी कृषि के छात्र की पिटाई के बाद परिसर में हंगामा। तोड़फोड़, चक्काजाम।
18 फरवरी- बीएचयू के लंका गेट पर छात्र और दुकानदारों के बीच मारपीट के बाद बवाल
7-8 अप्रैल- भारतेंदु और राजाराम हॉस्टल के जूनियर और सीनियर छात्रों में मारपीट। सात अप्रैल को हवाई फायरिंग, हॉस्टल में तोड़फोड़। आठ अप्रैल को फिर बवाल
आठ सितंबर – कला संकाय में छात्रा के साथ रैगिंग के बाद दो हॉस्टल के बीच बवाल, पत्थरबाजी, आगजनी।
23 सितंबर- सुरक्षा की मांग को लेकर धरनारत छात्राओं पर लाठीचार्ज के बाद पत्थरबाजी, आगजनी, लाठीचार्ज, हवाई फायरिंग

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