वैमानिकी क्षेंत्र में बौद्धिक संपदा अधिकार विकसित करने की जरुरत: वायुसेना उप-प्रमुख

नयी दिल्ली, सात सितंबर भाषा वायुसेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, वैमानिकी क्षेत्र में बौद्धिक संपदा अधिकार विकसित करने के मामले में देश ने सुस्ती दिखाई है। उन्होंने कहा कि अगर देश स्वदेशी प्रौद्योगिकियों पर काम नहीं करता है तो उसे विदेशी विनिर्माताओं की दया पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। यह बात आज वायु सेना उप-प्रमुख एस बी देव ने एक कार्यक््रुम के दौरान कही।

देव ने कहा, भारत विकसित करने के मामले में आलसी है। आपके पास बौद्धिक सम्पदा अधिकार आईपीआर पैदा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अगर आप आईपीआर नहीं करते हैं तो आप पहले से उपलब्ध डिजाइन के अनुरूप कलपुर्जे तैयार करेंगे और आपको उनकी दया पर निर्भर रहना पड़ेगा।

निर्माता उपलब्ध कराए गए डिजाइनों के अनुरुप उपकरण या पुरजें बना रहे हैं। समीक्षकों के अनुसार देश में नवाचार की अनुमति नहीं है। विरोधाभासों पर खेद प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि भारत लड़ाकू विमान, हेलीकॉप्टरों का निर्माण करता है, लेकिन मानव रहित हवाई यान यूएवी का आयात करता है।

दरअसल, वह एयरफोर्स, भारतीय उद्योग परिसंघ सीआईआई और सेंटर फॉर एयर पावर स्टडीज द्वारा एनर्जीजिंग इंडियन एयरोस्पेस इंडस्ट्री विषय पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में बोल रहे थे।

उन्होंने कहा कि जितनी जल्दी हम बिल्ट टू प्रिंट नकल विचार को छोड़ेगे, उतनी जल्दी देश में बौद्धिक संपदा अधिकार पैदा होना शुरू हो जायेगा। यह बेहतर होगा। इस गति को बनाए रखने का यही रास्ता है कि हम विनिर्माण शुरू करें। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि आईपीर बनने से भारतीय कंपनियों के लिए बाहर की दुनिया के दरवाजे खुल जायेंगे।

बौद्धिक संपदा अधिकार विकसित करने में आ रही समस्या को उजागर करते हुए देव ने कहा कि विमानिकी में विशेषग्यता रखने वाले वायुसेना अधिकारियों के सेवानिवृत होने के बाद उद्योगों द्वारा उनका ठीक से उपयोग नहीं किया जाता है। इसके स्थान निजी सुरक्षा एजेंसियां उन्हें रख लेती हैं और रक्षा मंत्रालय में बैठक फिक्स करने के लिए उनका इस्तेमाल करती हैं।

भाषा

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