वेस्ट यूपी से खत्म हो गई चौधरी की चौधराहट

विशेष संवाददाता, मेरठ

आरएलडी प्रमुख चौधरी अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी के लिए मौजूदा विधानसभा चुनाव के नतीजे बेहद दर्द भरे हैं। वजह साफ है कि चुनाव से पहले गठबंधन करने के नाम पर दूसरे दलों ने उन्हें अछूत माना अब वोटरों के अलग राह चुन ली। 257 सीटों से में सिर्फ एक बागपत में छपरौली ही पार्टी जीत सकी है।

आरएलडी की दौर अब बेहद मुश्किल माना जाएगा। आरएलडी इस बार मान रही थी कि वह सत्ता की चाबी हासिल करने वाला दल होगा। इसीलिए अजित सिंह ने अपने बेटे जयंत चौधरी को सीएम फेस तक घोषित कर दिया था। अजित सिंह के सामने बड़ी और पहली चुनौती परंपरागत जाट वोट को साथ जोड़ने की थी, लेकिन वह पूरी तह नाकामयाब रहे। 2012 तक जाट आरएलडी के साथ था। मुस्लिम भी उनका साथ देता था। मगर 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद मुस्लिम और जाट का साथ छूट गया। जाट बीजेपी और मुस्लिम सपा के पक्ष में चला गया। जाट-मुस्लिम की दोस्ती दरकने पर 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह और उनके बेटे जयंत भी हार गए थे।

नहीं मिला कोई साथी

हरियाणा में जाटों पर चली गोली, अजित सिंह की दिल्ली से कोठी खाली कराने, आरक्षण की सही पैरवी नहीं होने से उसको खत्म होने की वजह से बीजेपी से नाराज जाट को इस चुनाव में पाले में लाने के लिए अजित और जयंत सक्रिय रहे। लेकिन उनको पहला झटका तब लगा जब गठबंधन करने को लेकर भी राजनीतिक दलों ने छोटे चौधरी को अछूत मान लिया। बीजेपी, कांग्रेस, सपा, बीएसपी यहां तक की जेडीयू ने भी सियासी दोस्ती करने के लिए हाथ पीछे खींच लिए थे। अजित सिंह ने दूसरे दलों को छोड़ने वालों को साथ लिया और 297 सीटों पर प्रत्याशी खड़े कर दिए। लेकिन आरएलडी को झटका तब लगा जब इस बार उसको एकमात्र बागपत की छपरौली की सीट मिली। वह भी कम अंतर से। जबकि 2012 में उसके 9 विधायक जीते थे। 2002 में 14, 2007 में 8 विधायक जीते थे।

जाट गए बीजेपी के साथ

मजे की बात यह है कि बीजेपी से नाराजगी के बाद भी जाट वोटर ने आखिर में ज्यादातर जगह बीजेपी को ही वोट दिया। मेरठ की मेरठ दक्षिण सीट पर करीब 12 हजार वोट हैं। आरएलडी ने यहां से गुर्जर को कैंडिडेट बनाया था। गुर्जर भी बड़ी तादाद में हैं। आरएलडी के प्रत्याशी 10 हजार वोट भी नहीं पा सके। सरधना सीट पर 17 हजार जाट वोटर होने के बाद भी आरएलडी के प्रत्याशी को दो हजार वोट मिले। मेरठ सिटी में दो हजार जाट वोटर हैं, लेकिन आरएलडी के प्रत्याशी को कुल 700 वोट मिले। मेरठ कैंट से आरएलडी के जाट कैंडिडेट को सिर्फ 2500 वोट ले। जबकि वहां करीब 22 हजार जाट वोटर हैं। बागपत अजित सिंह का गढ़ है। वहां आरएलडी काफी पिछड़ गई। छपरौली में जीते जरूर, लेकिन 2012 से जीत का अंतर काफी कम रहा।

गोलबंदी का दांव भी नाकाम..

अजित सिंह ने इस बार वेस्ट यूपी की तीन रिजर्व सीटों पर नया प्रयोग किया था, उन्होंने पुरकाजी, हापुड़ और हस्तिनापुर सीट पर दूसरी जाति और संप्रदाय में शादी करने वाली दलित लड़की को टिकट दिया था। अजित सिंह की रणनीति थी कि बेटी होने की वजह से यहां उसे दलित वोट मिल जाएंगे और जिस जाति या संप्रदाय के लड़के से शादी की गई है, बहू होने के नाते वह समाज भी वोट दे देगा। यही वजह रही कि अजित ने हापुड़ में अंजू मुस्कान को टिकट दिया। अंजु ने बुलंदशहर के मुस्लिम युवक से शादी की थी। हस्तिनापुर में गुर्जर से शादी करने वाली दलित बेटी को टिकट दिया था। हस्तिनापुर सीट पर गुर्जर की बड़ी तादाद है। इसी तरह पुरकाजी सीट पर यही रणनीति अपनाई। लेकिन तीनों ही जगह अजित सिंह की रणनीति काम नहीं आई और वोटरों ने नकार दिया।

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