म्यांमार को भारत के संघवाद से सीखने की जरूरत: भारतीय राजदूत विक्रम मिश्री

नेपेडा
भारतीय राजदूत विक्रम मिश्री ने म्यांमार के लिए एक मॉडल के रूप में भारत की संघीय राजनीति को रखते हुए कहा कि संघवाद ने देश के भविष्य के निर्माण में बड़ा योगदान किया है। म्यांमार के लोकतांत्रिक बदलाव विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। मिश्री पहले स्पेन में राजदूत थे।

मिश्री ने कहा, ‘हम भारत में राज्यों को दी जाने वाली अधिक से अधिक शक्तियों से खुश हैं। यह हमारे देश को कमजोर नहीं करता है, यह मजबूत बनाता है।’ उन्होंने कहा कि समावेशी संघवाद देश की एकता में मदद करेगा। मिश्री ने कहा, ‘भारत में जो हुआ है, वही म्यांमार में भी होगा। यदि आप एक समावेशी महासंघ बनाते हैं, तो यह आपकी एकता को मजबूत करेगा और आपको कमजोर नहीं करेगा।’

भारतीय दूत ने एक संघ बनाने के लिए नेपाल के प्रयासों का भी उदाहरण दिया और कहा कि म्यांमार हिमालयी देश की सफलताओं और विफलताओं से बहुत कुछ सबक सीख सकता है। मिश्री ने कहा, ‘नेपाल ने पहले ऐसी राजनीति से शुरुआत की, जो अल्पसंख्यकों या उनमें से अधिकांश को बाहर कर देती। जाहिर है कि वहां इसका बहुत बड़ा विरोध हुआ, क्योंकि यह स्वीकार्य नहीं था।’ उन्होंने कहा कि इससे उत्पन्न बहस ने नेपाल को धीरे-धीरे एक समावेशी संघवाद के लक्ष्यों तक पहुंचने में मदद की है। मिश्री ने कहा, ‘अभी तक प्रक्रिया पूरी नहीं हुई है। नेपाल को अभी तक एक संविधान प्राप्त नहीं हुआ है और पुरानी विधायी अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है। म्यांमार उन गलतियों से बचने के लिए नेपाल के अनुभव को बारीकी से देख सकता है।’

म्यांमार के लोकतांत्रिक परिवर्तन पर इस संगोष्ठी की शुरुआत शुक्रवार से हुई। इसमें म्यांमार में लोकतंत्र की प्रगति पर विचार करने के लिए म्यांमार, अन्य एशियाई देशों और पश्चिमी देशों के 35 वक्ताओं को बुलाया गया है। संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए लोकतंत्र की प्रतीक और स्टेट काउंसलर आंग सान सू की ने ‘गरिमा के साथ लोकतंत्र’ की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘हम शांति और विकास को विभाजित नहीं कर सकते।’

उन्होंने कहा, ‘ऐतिहासिक रूप से, म्यांमार में ‘विकास के लिए अवसर’ की कमी थी, जबकि हमारे पड़ोसियों का विकास हुआ।’ सू की ने कहा, ‘लेकिन पीछे छूटने का भी फायदा है। हम पहले से ही विकसित देशों अनुभव ले सकते हैं।’ लेकिन सू की ने कहा कि वह इस व्यापक धारणा से असहमत हैं कि ‘शांति से भी ज्यादा जरूरी विकास है।’ सू की ने कहा, ‘अगर हमारे पास शांति नहीं है, तो विकास टिकाऊ नहीं होगा। साथ ही, अगर कोई विकास नहीं है, तो हम शांति भी नहीं पा सकते हैं, इसलिए हमें दोनों के लिए प्रयास करना है।’ उन्होंने सशस्त्र विद्रोही समूहों विशेषकर उत्तरी म्यांमार में चीन की सीमा के पास के विद्रोही समूहों के साथ चल रहे शांति प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा, ‘यही कारण है कि म्यांमार की सरकार देश में पहले गृहयुद्ध को रोकने की कोशिश कर रही है।’

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