मौलवियों ने बनाया वॉट्सऐप ग्रुप, आए मजेदार सवाल

कानपुर
तकनीक के जमाने में शायद ही कोई इससे दूर रह पाता हो। युवा पीढ़ी के साथ उन्हीं के अंदाज में जुड़ने के लिए कानपुर स्थित इस्लामिक इल्मी अकादमी के मौलवियों ने तकनीक का इस्तेमाल करने का फैसला किया है। यहां के मौलाना रमजान के महीने में रोजा रखने वाले मुस्लिमों से वॉट्सऐप के द्वारा जुड़ रहे हैं, ताकि उनकी शंकाओं का जवाब दिया जा सके। रोजा रखने वाले मुस्लिम युवाओं से संपर्क करने और उन्हें सुझाव देने के लिए मौलवियों ने एक वॉट्सऐप ग्रुप बनाया है।

वक्त के साथ मुस्लिम युवा वर्ग के सवालों में भी काफी बदलाव आया है। अब उनके ज्यादातर सवाल तकनीक से जुड़े होते हैं। रोजे के दौरान सूई लेनी चाहिए या नहीं और सफर के दौरान रोजा रखना चाहिए या कि नहीं जैसे सामान्य सवालों के अलावा युवाओं ये युवा कई दिलचस्प सवाल लेकर मौलवियों से संपर्क कर रहे हैं। कई युवा यह जानना चाहते हैं कि क्या रोजा रखते हुए इंटरनेट जैसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है। अकादमी के मौलवियों द्वारा बनाए गए इस वॉट्सऐप ग्रुप पर एक सवाल यह भी आया कि क्या रोजा रखते हुए मोबाइल फोन पर समय बिताना, वक्त काटने के लिए गेम्स खेलना और सोशल नेटवर्किंग साइट्स का इस्तेमाल करना सही है?

मौलवियों का कहना है कि उन्हें समय के साथ आगे बढ़ने की जरूरत का एहसास है और वे इस तरह के सवालों के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। अकादमी के अध्यक्ष मतीन-उल-हक़ उसामा कासमी ने बताया, ‘युवा हमसे तकनीक के इस्तेमाल से जुड़े सवाल पूछते हैं।’ पहले भी लोग रमजान शुरू होने से पहले मौलवियों से कई चीजों से जुड़ी शंकाओं पर सवाल पूछा करते थे, लेकिन अब जमाने के साथ-साथ ये सवाल भी बदल गए हैं। मतीन बताते हैं, ‘पहले लोग हमसे पूछते थे कि अगर कोई गलती से पानी पी ले या फिर सूई लगवा ले, तो क्या उसका रोजा टूट जाएगा। अब तो ज्यादातर सवाल स्मार्टफोन, इंटरनेट और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से जुड़े होते हैं।’

मतीन बताते हैं कि अकादमी के मौलवी युवाओं को सलाह देते हैं कि केवल रमजान ही नहीं, बल्कि आम दिनों में भी मोबाइल फोन पर समय बर्बाद करना अच्छी बात नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हम युवाओं से कहते हैं कि तकनीक का इस्तेमाल उत्पादक और सकारात्मक होना चाहिए, ना कि समय काटने के लिए।’ उधर अकादमी की तकनीक और आधुनिकता के साथ कदमताल मिलाने की कोशिशों का युवाओं ने भी काफी स्वागत किया है। एक युवा ने बताया, ‘हमें खुशी है कि मौलानाओं ने भी तकनीक का इस्तेमाल शुरू कर दिया है। इससे युवाओं और उनके बीच का फासला मिटेगा।’

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ें- Clerics take to WhatsApp to guide rozedars

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