मिडल-ईस्ट में चीन की रिस्की चाल, अमेरिका को खतरा

पेइचिंग
चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में तीन देशों की यात्रा कर एक बार फिर से उदाहरण पेश किया है कि चीन ग्लोबल लेवल पर अपना प्रभाव बढ़ाने में लगा है। इस क्षेत्र में अपनी पहली यात्रा के दौरान चिनफिंग सऊदी अरब, मिस्र और ईरान गए। दुनिया के सबसे परिवर्तनशील इन देशों में चिनफिंग ने अपनी सरकार की मौजूदगी बढ़ाई है।

इस साल की पहली विदेश यात्र में चिनफिंग ने इन देशों को चुना। चीनी प्रीमियर की इन यात्राओं को वहां की विदेश नीति में एक अहम पड़ाव माना जा रहा है। भविष्य में यह चौंकाने वाला नहीं होगा जब चीन पेट्रोलियम से जुड़ी अपनी निर्भरता मिडल-ईस्ट और अरब की खाड़ी में बढ़ा दे। विश्लेषकों का कहना है कि चीनी नेता की यह यात्रा समान्य से कहीं ज्यादा है। यह यात्रा केवल कैश से रिसोर्स लेने का मामला नहीं है। यह काम चीनी नेता अफ्रीका में कहीं भी कर सकते हैं। इस यात्रा के जरिए चीन ने बहुत कुछ दांव पर लगाया है।

वन बेल्ट वन रोड
चीन की ग्लोबल की रणनीति में मिस्र और ईरान दोनों अहम देश हैं। चीन का उद्देश्य प्राचीन सिल्क रोड के जरिए फारस को जोड़ना है। इसे वन बेल्ट, वन रोड पहल के नाम से जाना जा रहा है। चीन की रणनीति है कि वह अपनी इकॉनमी को सेंट्रल एशिया के मार्केट से जोड़ दे। मिडल ईस्ट और अफ्रीका का समुद्री मार्ग महंगा है। यदि चीन इसे करने में सफल रहता है तो वह इन देशों में विकास के लिए बिलियन डॉलर का फंड लगाने का वादा कर व्यापार के नए मार्गों को खोलने में कामयाब रहेगा।

संयोग से चिनफिंग इन देशों की यात्रा पर तब गए जब पूरे इलाके में नाटकीय रूप से सत्ता शिफ्ट हो रही थी। चीन ने इस मौके का बढ़िया इस्तेमाल किया। अमेरिका से सऊदी अरब खुद को अलग-थलग महसूस कर रहा था और वह ईरान के करीब आता दिख रहा था। ऐसे में सऊदी अरब ने शी चिनफिंग का गर्मजोशी से स्वागत किया। अरब सागर में ईरान की तरफ से भी चीन को काफी तवज्जो मिली। ईरान के बेहद अहम नेता अयातुल्ला अली खमेनी ने चीन के साथ दोस्ती को लेकर काफी तत्परता दिखाई और उन्होंने चीन को अमेरिकी काट के तौर पर देखा। इसी तरह मिस्र में चीन को अमेरिका के अहम प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा और उसने भी चिनफिंग की यात्रा में खूब उत्साह दिखाया।

चीन रणनीतिक चाल के तहत मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में अपनी नीतियों और अजेंडों का विस्तार करना चाहता है। अब सवाल यह है कि क्या चीन इन इलाकों में अपने उद्येश्य को लेकर कामयाब होगा? यदि होता है तो यहां की परिवर्तनशील राजनीति में हिंसक होगी या स्थिरता आएगी? चीन के लिए इस इलाके में जोखिम भी कम नहीं है। इस कॉन्फ्लिक्ट जोन में किसी भी नए देश के लिए पांव पसारना और उससे फायदा उठाना इतना आसान नहीं है।

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