पाक को हुआ यकीन, चीन की चाल में वह फंसता जा रहा है

नई दिल्ली
पाकिस्तान को धीरे-धीरे ही सही इस बात का अहसास होने लगा है कि उसका तथाकथित ‘सदाबहार दोस्त’ चीन भरोसेमंद सहयोगी नहीं बल्कि विस्तारवादी सोच रखने वाला एक मुल्क है। जबकि चीन ने कहा है कि उसके ‘वन बेल्ट वन रोड’ (OBOR) प्रॉजेक्ट से छोटे और विकासशील देशों को आर्थिक लाभ होगा। चीन-पाक आर्थिक गलियारा (CPEC) भी OBOR का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसके जरिए चीन दक्षिण एशिया, मध्य एशिया, अफ्रीका और यूरोप से जमीनी और समुद्री मार्ग से जुड़ना चाहता है। लेकिन CPEC को लेकर अब सच्चाई सामने आ रही है कि यह पाकिस्तान की संपत्तियों को हड़पने की चीन की एक चाल है।

इसे समझिए। चीन छोटे देशों में सबसे पहले जमीन और संपत्तियां हासिल करता है। इसके बाद इंफ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स के लिए वह ऊंची दरों पर लोन देता है और जब यह देश लोन का भुगतान करने में नाकाम रहता है तो चीन प्रॉजेक्ट पर मालिकाना हक जमा लेता है।

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ताजा उदाहरण श्री लंका का है। कुछ दिनों पहले ही वह चीनी कर्ज के जाल में फंस गया, तब उसने औपचारिक तौर पर हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज पर दे दिया। इसके साथ ही श्री लंका ने चीनी लोन को चुकाना शुरू कर दिया। पिछले साल तत्कालीन वित्त मंत्री रवि करुनारत्ने ने कहा था कि श्री लंका पर चीन का 8 अरब डॉलर कर्ज है। ऊंची दरों के कारण लोन बढ़ता चला गया और श्री लंका को एक महत्वपूर्ण संपत्ति गंवानी पड़ी, जिसका एक सामरिक महत्व है। दरअसल, इस पोर्ट के जरिए चीन को हिंद महासागर में अपने पैर जमाने का मौका मिल गया है। विपक्ष के नेताओं ने इस लीज को ‘पोर्ट को बेचना’ करार दिया।

पढ़ें: पाकिस्तान ने डैम के लिए चीनी मदद की पेशकश ठुकराई

उधर, चीन ने मालदीव के साथ फ्री-ट्रेज डील पर हस्ताक्षर किया है। इससे साफ है कि चीन छोटे देशों को अपना उपनिवेश बनाने की रणनीति पर चल रहा है। कुछ दिन पहले पाकिस्तान ने डेमर-भाषा डैम के लिए 14 अरब डॉलर की चीनी मदद की पेशकश को ठुकरा दिया। इस्लामाबाद ने चीन से कहा था कि वह 60 अरब डॉलर के CPEC प्रॉजेक्ट से इस डैम प्रॉजेक्ट को बाहर रखे और इसे पूरी तरह पाकिस्तान को ही बनाने दे। यह प्रॉजेक्ट PoK में स्थित है जिस पर भारत अपना दावा करता है।

पाकिस्तान के इस कदम से साफ हो गया कि उसे यकीन हो गया है कि चीन के भारी-भरकम लोन के साथ बिजनस करना जोखिम भरा है। कई विशेषज्ञ पहले ही आगाह कर चुके हैं कि पाकिस्तान में स्थायी तौर पर ठिकाना बनाने के लिए CPEC चीन की औपनिवेशिक चाल है। यहां तक कि राजनीतिक दलों ने भी चीनी प्रॉजेक्ट्स के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी है। उन्होंने सवाल किया है कि क्या ऐसे प्रॉजेक्ट पाकिस्तान को वास्तव में लाभ पहुंचा सकते हैं?

नेताओं और अर्थशास्त्रियों द्वारा CPEC की आलोचना के बाद चीन अब पाक सरकार के साथ संवाद को आगे बढ़ाने में सतर्क हो गया है और वह चाहता है कि पाक सेना भी आगे आए। रिपोर्टों के मुताबिक CPEC के तहत पाकिस्तान को जारी होने वाले फंड की देखरेख के लिए पेइचिंग की नई गाइडलाइंस से पाक सेना की भूमिका बढ़ने की आशंका है। चीन अपनी शर्तों पर पाक को फंड दे रहा है। तीन बड़े रोड प्रॉजेक्ट्स को फंडिंग पर अंतिम सहमति 20 नवंबर को हुई जॉइंट वर्किंग ग्रुप की बैठक में होनी थी पर चीन ने पाक सरकार को सूचित किया कि फंड जारी करने की मौजूदा प्रक्रिया को खत्म कर दिया गया है। पेइचिंग अब नई गाइडलाइंस जारी करेगा।

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