निर्भया फंड: मिले तीन हजार करोड़ खर्च हुए बस 20 फीसदी 600 करोड़

अभिषेक रावत
दिल्ली के निर्भया कांड को चार वर्ष होने को हैं। आज भी इसे याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। निर्भया कांड के बाद महिलाओं सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे किए गए, निर्भया फंड भी बनाया गया। फंड की शुरुआत 2013 से की गई। इसके तहत केंद्र सरकार की ओर से हर वर्ष 1 हजार करोड़ रुपये इस फंड को दिए जाते हैं। पिछले तीन वर्षों में केंद्र की ओर से निर्भया फंड में 3 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं जबकि खर्च मात्र 600 करोड़ ही किए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट इस बात को लेकर केंद्र व सभी राज्य सरकारों से सवाल कर चुकी है कि इस फंड का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा है।

दावा किया गया था कि रेप विक्टिम या उसकी फैमिली को आर्थिक मदद की दरकार होगी तो निर्भया फंड से की जाएगी। शुरुआत में हर ओर यह दावे किए गए कि इस फंड से चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएंगे। अस्पतालों में अलग से रेप विक्टिम के चेकअप आदि की व्यवस्था करने की बात की गई थी। इसके अलावा रेप विक्टिम के उपचार के लिए भी खर्चा देने की बात कही गई थी। बाद में समस्या आई कि फंड का इस्तेमाल कहां किया जाए। केंद्र सरकार की ओर से इस फंड को किस काम में खर्च करना है, इसका जिम्मा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को दिया गया। निर्भया फंड की नोडल अथॉरिटी के तौर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को यह पूरी छूट है कि देश के किस राज्य को महिला उत्थान व सुरक्षा के लिए कितनी रकम देनी है।

फंड इस्तेमाल न करने को लेकर सवाल
निर्भया फंड के इस्तेमाल न किए जाने को लेकर काफी सवाल उठ चुके हैं। पार्लियामेंट्री पैनल ने मार्च 2016 में कहा कि 2013 से 2016 तक निर्भया फंड में 3 हजार करोड़ रुपये दिए गए हैं। यह फंड ऐसा ही पड़ा है। बमुश्किल कुछ रकम ही महिला सुरक्षा आदि पर खर्च की गई है। पैनल ने यह भी कहा कि देश में महिलाओं के प्रति अपराध में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसा लगता है कि मंत्रालय फंड के इस्तेमाल के लिए अभी तक कोई ठोस प्लान नहीं कर पाया है। कुछ ऐसे ही सवाल कुछ एनजीओ ने भी उठाए और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में बताया गया कि तीन वर्षों में तीन हजार करोड़ रुपया एकत्र तो गया लेकिन उसका इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। महिला सुरक्षा के लिए इस फंड के इस्तेमाल की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने भी फंड को लेकर यही टिप्पणी की कि मंत्रालय व सरकार इस फंड के इस्तेमाल के लिए कोई ठोस प्लान नहीं बना पाए हैं। अदालत के समक्ष ही महिला एवं विकास मंत्रालय के अधिकारी ने बताया कि पिछले तीन वर्षों में विभिन्न योजनाओं व कार्यों पर 600 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। लेकिन मंत्रालय के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि 24 सौ करोड़ रुपये अभी तक क्यों नहीं इस्तेमाल किए गए।

फंड बनाकर पल्ला झाड़ा
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कुछ एनजीओ ने केंद्र सरकार पर यह आरोप भी लगाया कि जब सरकार पर कोई दबाव पड़ता है तो अपना पल्ला झाड़ने के लिए फंड का ऐलान कर दिया जाता है। हकीकत यह है कि फंड का सही इस्तेमाल करने पर कोई प्रयास नहीं किया जाता। देश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध में कोई कमी नहीं आ रही है लेकिन इसके बाद भी सरकार इस फंड का इस्तेमाल करने पर जोर नहीं दे रही है। महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की जरूरत है, देश भर में सीसीटीवी कैमरे लगने चाहिए, देह व्यापार में धकेली गई युवतियों व महिलाओं के उत्थान के लिए फंड का इस्तेमाल किया जाए। महिला अपराध की जांच के लिए अलग से फरेंसिक लैब बनवाई जाएं।

कहां कितने खर्च किए गए
सेंट्रल विक्टिम कंपेनसेशन फंड में 200 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
क्राइम अगेंस्ट वुमेन की जांच के लिए देश की पुलिस को जिला अनुसार 324 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं।
परेशानी में फंसी महिला की मदद के लिए वन स्टॉप सेंटर बनाया गया है, जिस पर 18 करोड़ से ज्यादा खर्च किए गए हैं।
देश भर की महिलाओं के लिए एक हेल्पलाइन तैयार की गई है जिस पर लगभग 70 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

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