देश के फाइनैंशल सिस्टम की हालत और बिगड़ी

मुंबई भारतीय फाइनैंशल सिस्टम की सेहत मार्च तक के 6 महीनों में बिगड़ी है। बैड लोन बढ़ने और बैंकों की प्रॉफिटेबिलिटी कम होने से ऐसा हुआ है। बड़े पैमाने पर डिफॉल्ट होने पर बैंक बदहाल हो सकते हैं। हालांकि, अगर बड़ी संख्या में डिपॉजिट निकाले जाते हैं तो उससे पैदा होने वाले रिस्क का बैंक आसानी से सामना कर सकते हैं। ये बातें रिजर्व बैंक ने कही हैं। बड़े पैमाने पर डिफॉल्ट होने पर बैड लोन बढ़ेगा।

इससे सरकारी बैंकों को प्राइवेट बैंकों के मुकाबले ज्यादा झटका लगेगा। आरबीआई ने छमाही फाइनैंशल स्टेबिलिटी रिपोर्ट में कहा है कि अगर बड़े बॉरोअर्स डिफॉल्ट करते हैं तो भारतीय बैंकों की 25 पर्सेंट कैपिटल खत्म हो सकती है। स्ट्रेस्ड टेस्ट के इस रिजल्ट में अलग-अलग हालात की कल्पना की गई है। बैंकों के लिए ग्लोबल बासल नॉर्म्स के मुताबिक ऐसे टेस्ट करना जरूरी है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बैंकिंग स्टेबिलिटी इंडिकेटर (बीएसआई) से पिछले 6 महीनों में बैंकिंग सेक्टर के बढ़े रिस्क का पता चलता है।’ रिपोर्ट के मुताबिक, ‘बीएसआई के ट्रेंड एनालिसिस से संकेत मिलता है कि 2010 के मध्य से बैंकिंग सेक्टर की जो स्टेबिलिटी कंडीशन खराब होनी शुरू हुई थी, वह अब काफी बिगड़ चुकी है। बैंकों के बैड लोन में बढ़ोतरी और उनकी कम प्रॉफिटेबिलिटी के चलते ऐसा हुआ है।’ यह आखिरी फाइनैंशल स्टेबिलिटी रिपोर्ट है, जो रघुराम राजन के आरबीआई गवर्नर रहने के दौरान जारी हुई है।

इसमें बैंक, नॉन-बैंकिंग फाइनैंस कंपनियों, इंश्योरेंस कंपनियों, म्यूचुअल फंड्स के बीच लिंक को देखा गया है। रिपोर्ट में इसका जायजा लिया गया है कि इनमें से एक या एक से अधिक सेगमेंट के संकट में फंसने का फाइनैंशल सिस्टम पर क्या असर होगा। इसमें देखा गया है कि फाइनैंशल इंस्टीट्यूशंस ने बॉरोअर्स को कितना लोन दिया है और क्या ये संस्थान डिफॉल्ट को झेलने की स्थिति में हैं? राजन का कार्यकाल 4 सितंबर को खत्म हो रहा है और उसके बाद वह एकेडमिक वर्ल्ड में लौट जाएंगे।

पिछले कुछ वर्षों में स्टील, रोड बनाने वाली कंपनियों के डिफॉल्ट करने के चलते बैंकों की हालत काफी खराब हुई है। वहीं, रिजर्व बैंक ने पिछले साल से बैड लोन दिखाने के लिए सख्त रूल्स लागू किए थे, जो उसके एसेट क्वॉलिटी रिव्यू प्रोग्राम का हिस्सा है। इसके बाद से बैंकों के नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स में काफी बढ़ोतरी हुई है। बैंकों को बढ़ते बैड लोन के लिए प्रोविजनिंग यानी मुनाफे का एक हिस्सा अलग रखना पड़ रहा है।

इससे कई सरकारी बैंक घाटे में आ गए हैं। हालांकि, कुछ बैंकों के चीफ ने कहा है कि इस मामले में सबसे बुरा दौर गुजर गया है। आरबीआई का कहना है कि इस साल मार्च तक ग्रॉस बैड लोन कुल कर्ज का 7.6 पर्सेंट था, जो एक्सट्रीम स्ट्रेस की स्थिति में अगले साल मार्च तक 9.3 पर्सेंट हो सकता है। सरकारी बैंकों के लिए यह आंकड़ा 9.6 पर्सेंट से बढ़कर 11 पर्सेंट तक जा सकता है।

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