जंगलों की कटाई से तड़ातड़ गिर रही बिजली

प्रवीन मोहता, कानपुर
मॉनसून सीजन की शुरुआत में यूपी, बिहार और देहरादून में बिजली गिरने से भारी तादाद में मौतों से आम लोग सहम गए, लेकिन वैज्ञानिक इससे हैरान नहीं हैं। सीएसए यूनिवर्सिटी के मौसम विज्ञानी अनिरुद्ध दूबे के अनुसार, इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार जंगलों और पेड़ों की कटाई है। पहले बिजली पोली (नरम) जमीन और पेड़ों पर गिरती थी। इससे बचने का एक ही तरीका है, सक्युलंट पौधे जैसे नीम, पीपल और बगरद अधिक से अधिक लगाए जाएं।

ऐसे चमकती है बिजली
दूबे के मुताबिक, आसमान में बिजली बनने का एक पूरा प्रॉसेस है। वातावरण में जोरदार आंधी आने, भूकंप या तारे टूटने से बेहद छोटे डस्ट पार्टिकल्स (धूल के कण) बनते हैं। ये एक बाल से कई गुना छोटे यानी सिर्फ 10 माइक्रोमीटर के होते है। धरती पर नमी या उमस होने पर यह उड़कर ऊपर जाते हैं। नीचे से गर्मी और ऊपर से बादलों की ठंडक के चलते पार्टिकल्स में घर्षण पैदा होता है। इससे ही बिजली चमकती है। फिलहाल जिन बादलों से बारिश हो रही है, इन्हें ‘क्युमुलोनिंबस’ कहते हैं। नीचे से देखने पर यह काफी छोटे दिखते हैं, लेकिन ऊपर इनकी ऊंचाई 2.5 से 5 किमी तक होती है।

क्यों बढ़े हादसे
दूबे कहते हैं कि पहले जंगल ज्यादा थे। बिजली अक्सर पोली जगहों पर जैसे दीमक की बांबी या दूध और गोंद वाले पेड़ों (सक्युलंट) महुआ, बरगद, पीपल, गूलर पर गिरती थी। इससे यह सीधे जमीन में चली जाती थी। पार्टिकल्स के घर्षण से आसमान में पॉजिटिव करंट बनता है। इसको नेगेटिव करंट (अर्थिंग) जमीन से मिलती है। पेड़ कम होने से ये एनर्जी बिल्डिंगों या इंसानों के जरिए जमीन तक पहुंच रही है।

देसी प्रजातियों पर ध्यान जरूरी
भारतीय हालात में देसी पौधे ही बेहतर हैं। लोगों को बिजली गिरने से जैसे हादसों से बचाव के लिए पीपल, गूलर, बरगद, पाकड़, नीम, महुआ, बबूल और जामुन जैसे पौधों को लगाना होगा। इनकी टहनियों को तोड़ने पर सफेद रंग का लिजलिजा पदार्थ निकलता है। सड़कों के किनारे कच्ची जगहों पर फलदार पौधे लगाएं। शीशम या टीक भी फायदेमंद हो सकते हैं। इनके अलावा ऊंची बिल्डिंगों पर लाइटनिंग कंडक्टर लगाना जरूरी किया जाए।

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