कैंपस से निकलकर राजधानी तक पहुंची पॉलिटिक्स

नई दिल्ली
स्टूडेंट्स की पॉलिटिक्स अब कैंपस के पार देश-दुनिया के कोने-कोने पहुंच रही है। मुद्दे अब सिर्फ कैंपस और पढ़ाई से जुड़े नहीं बल्कि महिलाओं, दलितों, राष्ट्रवाद जैसे विषयों को छू चुके हैं।

चंद सालों में स्टूडेंट्स की पॉलिटिक्स का नजरिया बदला है। हैदराबाद यूनिवर्सिटी, जेएनयू, एफटीआईआई से चिंगारियां उठीं और कई कैंपस इसकी गिरफ्त में आए। विचारधाराओं की लड़ाई पॉलिटिकल पार्टी की लड़ाई के रूप में आमने-सामने थी, फिर चाहे वो एफटीआईआई में डायरेक्टर के अपॉइंटमेंट का मामला हो या फिर जेएनयू से उठे राष्ट्रवाद का। हालात ऐसे बने कि स्टूडेंट्स के मामूली मसलों पर भी राजनीति की मार पड़ी। बीएचयू इसका ताजा उदाहरण है। बीएचयू स्टूडेंट मिनीषी मिश्रा कहती हैं, ‘हम सिर्फ लड़कियों की सिक्यॉरिटी की मांग को लेकर आगे बढ़े मगर इसे राजनीति करार दिया गया।’

23 सितंबर को बीएचयू में लड़कियों के हॉस्टल में घुसकर लाठीचार्ज हुआ, जिसने उनका साथ दिया उन पर भी लाठियां बरसाई गईं। बीएचयू आर्ट्स फैकल्टी के स्टूडेंट कुणाल कहते हैं, ‘इसी वजह से हमें लड़कियों के साथ दिल्ली का रुख करना पड़ा। वीसी की भाषा ही बताती है कि एजुकेशन सिस्टम को लेकर उनकी सोच क्या है? छेड़छाड़ की शिकायत पर अगर इस सदी में भी लड़की को यह कहकर दोषी करार दिया जाता है कि देर शाम क्यों बाहर निकली या फिर रेप तो नहीं हुआ ना, तो ऐसे मसले तो कैंपस से निकलकर राजधानी तक ही पहुंचेंगे। दिक्कत है कैंपस में राइट विंग की दकियानूसी सोच को थोपना, सिर्फ इसलिए क्योंकि केंद्र में आपकी सरकार है।’

स्टूडेंट्स का मानना है कि यही 2015 में रोहित वेमुला के केस में हुआ था, जहां प्रशासन की तानाशाही से एक जान चली गई। हैदराबाद यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट उमा, जो कि रोहित आंदोलन में एक्टिव रहे हैं, कहते हैं, ‘हमें आंदोलन दिल्ली तक लाना पड़ा सिर्फ इसलिए क्योंकि पॉलिटिक्स इतने बड़े लेवल पर खड़ी हो गई कि स्टूडेंट के हक की मांग को ‘दलित राजनीति’ कहा जाने लगा।’

कोलकाता के जादवपुर यूनिविर्सटी के स्टूडेंट्स और एबीवीपी सपोर्टर्स के बीच का ‘बुद्धा इन द ट्रैफिक जाम’ फिल्म की स्क्रीनिंग को लेकर 2016 का क्लैश हो या फिर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के दो गुटों की झड़प, सबकी आवाज दिल्ली तक पहुंची। जेएनयूएसयू की प्रेजिडेंट गीता कुमारी कहती हैं, ‘स्टूडेंट्स के मुद्दों को राजनीति की किसी विचारधारा से जोड़कर नाम देना ही समस्या है। जेएनयू, रामजस हर जगह यही हुआ, ताजा उदाहरण है बीएचयू। जिस सेंट्रल यूनिवर्सिटी का वीसी ऐसा होगा, उसे चिल्लाना पड़ेगा और दिल्ली आकर सरकार और देश दोनों को अपनी आवाज सुनानी होगी।’

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