काशी से दुन‍िया भर में दौड़ने लगा काठी का घोड़ा

विकास पाठक, वाराणसी
काशी की ‘काठी’, काठी का घोड़ा, घोड़े को मिली इंटरनेट की ताकत, तो दौड़ा-दौड़ा दौड़ा घोड़ा दुनिया भर में दौड़ा। मशहूर गाने में थोड़ा सा बदलाव करें तो यह गाना वाराणसी लकड़ी के खिलौने के उद्योग की सफलता की कहानी बन जाता है। वाराणसी का कश्मीरीगंज इलाका लकड़ी के खिलौने बनाने का प्रमुख केंद्र है। खिलौने बनाने वाली खराद की मशीनें नवापुरा, जगतगंज, बड़ागांव, हरहुआ, लक्सा और दारानगर में भी चलती हैं। एक हजार से ज्यादा शिल्पी जंगली लकड़ी ‘कोरैया’ को तराश देवी-देवताओं की मूर्तियों से लेकर हाथी-घोड़े, सिधोंरा (सिंदूरदान), रंग-बिरंगे मटके और घर की साज-सज्जा के लिए खूबसूरत खिलौने देशभर के बाजारों में पहुंचाते हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस उद्योग की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। अब जीआई इंडिकेशन और इंटरनेट ने काशी की काठी के घोड़े को अमेरिका, जर्मनी और खाड़ी देशों तक सरपट दौड़ा दिया है। लकड़ी के खिलौने के कारोबार में पिछले कुछ महीनों में 40% तक की बढ़ोतरी हुई है।

ह्यूमन वेलफेयर असोसिएशन के निदेशक व जीआई विशेषज्ञ डॉ. रजनीकांत के मुताबिक, बनारस का काष्ठ कला व्यवसाय अपनी पहचान खो चुका था। जीआई पंजीकरण होने और शिल्पियों को प्रोत्साहन मिलने से व्यवसाय में फिर तेजी आई है। राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिल्पी रामेश्वर सिंह बताते हैं कि जीआई मिलने से विदेश तक हमारी पहुंच बनी है। साथ ही उत्पादों में भी काफी बदलाव किया गया है। अब खिलौनों की तुलना में इंटीरियर डेकोरेशन से जुड़ी चीजों पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।

यह है जीआई

जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) यानी बौद्धिक सम्पदा अधिकार रजिस्ट्रेशन, किसी जगह से जुड़े उत्पाद का अनोखापन स्पष्ट कर उसका महत्व बढ़ाता है। इसे विश्व व्यापार संगठन के प्रावधानों के तहत संरक्षण दिया गया है। जीआई टैग, उत्पाद को वैश्विक बाजार में ब्रैंड के रूप में स्थापित करता है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पाद की मांग बढ़ती है।

युवा भी जुड़ने लगे
बनारस आए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैन्युएल मैक्रों के सामने लाइव डेमो देने वाले शिल्पी धर्मराज सिंह ने बताया कि कारोबार में संभावनाएं बढ़ने से पुश्तैनी काम छोड़ पलायन करने को विवश युवा अब लौटने लगे हैं। आने वाले समय में इसके निर्यात में 100% तक की बढ़ोतरी होना तय है। आलम यह है कि कारोबार के रफ्तार पकड़ते ही कारीगरों की कमी पड़ने लगी है। मास्टर शिल्पी समेत राज्य दक्षता पुरस्कार से सम्मानित रामखेलावन, प्रेमशंकर विश्वकर्मा, शिवानंद, धर्मराज, राजकुमार, प्रकाश चंद्र जैसे शिल्पी डिमांड पूरी करने के लिए 200 कारीगरों को ट्रेनिंग दे रहे हैं। एक कारीगर को दिनभर के 400 से 500 रुपये भी मिल रहे हैं।

इंटरनेट से तराशी कलाकारी
शिल्पी गोदावरी सिंह का कहना है कि इंटरनेट ने डूबते उद्योग को संजीवनी दी है। कलाकारों ने यूट्यूब व अन्य वेबसाइट के जरिए ऐसी चीजों का निर्माण करना सीखा है जिनका इस्तेमाल इंटीरियर डेकोरेशन में होता है। मार्केट में ऐसी चीजों की मांग भी काफी है और कीमत भी बढ़िया मिलती है।

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