उत्पाती बंदरों की होगी नसबंदी!

रामेश्वर दयाल, नई दिल्ली

राजधानी के उत्पाती बंदरों से किसी भी प्रकार का छुटकारा न मिलते देख अब उनकी नसबंदी करने का निर्णय लिया गया है। इसके लिए साउथ एमसीडी की एक टीम बंदरों की नसबंदी का सिस्टम सीखने के लिए आगरा जा रही है। शासन मान रहा है कि बंदरों का आतंक कम करने का अब यही तरीका बचा है। उसका कारण यह है कि बंदर पकड़ने वाले (मंकी कैचर) मिल नहीं रहे हैं और जैसे-तैसे बंदर पकड़कर उन्हें जंगल में छोड़ आओ, तो वे फिर से वापस आ जाते हैं।

बंदरों के उत्पात से आम लोग तो परेशान हैं ही, जनप्रतिनिधि भी खासे तनाव में हैं। एमसीडी की बैठकों में वे कई बार इस मामले को उठा चुके हैं। उनका कहना हैं कि उन्हें हर रोज कहीं न कहीं से बंदरों के उत्पात या उनके द्वारा काटने की शिकायतों के अलावा उन्हें पकड़ने की मांग भी आती है। इस बाबत अफसरों को फोन करो तो वे साफ कह देते हैं कि उनके पास बंदरों को पकड़ने का कोई सिस्टम ही नहीं है। इसलिए वे कुछ नहीं कर सकते। आम जन और नेताओं को इसी परेशानी से निजात दिलाने के लिए साउथ एमसीडी ने अब बंदरों की नसबंदी करने का निर्णय लिया है, ताकि समस्या से कुछ निजात दिलाई जा सके।

साउथ एमसीडी के वैटिनरी विभाग के एक आला अधिकारी के अनुसार इसके लिए विभाग के डॉक्टरों की एक टीम आगरा जा रही है। वहां के एक सरकारी अस्पताल में बंदरों की नसबंदी की जाती है। वहां से नसबंदी का काम सीखकर दिल्ली के बंदरों को बधिया करने की कवायद शुरू कर दी जाएगी। उन्होंने बताया कि इसके लिए बंदरों को सीधे पकड़ने के बजाय उन्हें बेहोश किया जाएगा और उसके बाद उनकी नसबंदी कर उन्हें छोड़ दिया जाएगा। नसबंदी मादा और नर दोनों बंदरों की होगी। उन्होंने यह भी बताया कि नसबंदी के बाद बंदरों में आक्रामक क्षमता कम हो जाती है, जिससे लोगों को उनसे कम परेशानी होगी।

उन्होंने यह भी जानकारी दी कि एमसीडी को बंदर पकड़ने वाले ही नहीं मिल रहे हैं। पड़ोसी राज्यों तक ने बंदर पकड़ने के लिए किसी स्टाफ को भेजने से इनकार कर दिया है, जबकि हम प्रति बंदर 1200 रुपये देने को तैयार हैं। अब इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए वैटिनरी विभाग खुद की मंकी कैचर की नियुक्ति करेगा, इसके लिए कॉन्ट्रेक्ट पर कर्मचारी लिए जाएंगे, जो बंदर पकड़ने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि शुरू में बंदरों को पकड़कर उन्हें जंगल में भी छोड़ा जाएगा और उनकी नसबंदी भी की जाएगी।

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