इंडिया गोल्ड कॉइन के जमाने में भी मुगलिया सिक्कों की शान कायम

प्रमोद राय, नई दिल्ली

इस दिवाली लॉन्च हो रहे सोने के सरकारी सिक्के (इंडिया गोल्ड कॉइन) भले ही आपकी जरूरत में शामिल न हों, लेकिन अगर आप सिक्कों के शौकीन और पारखी हैं तो ‘बेशकीमती’ सिक्कों का एक बाजार आपकी बाट जोह रहा है। पुरानी दिल्ली की पटरियों पर बिकते ये सिक्के उन सरकारों के हैं, जो अब इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं।

यहां रानी विक्टोरिया की गिन्नी से लेकर जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब के चलाए सिक्के भी मिल जाएंगे। इनकी कीमत आपकी परख और मोलभाव पर निर्भर करती है। वैसे 100 से 1000 रुपये तक में आप चांदी, तांबे, कांसे और गिलट के ऐसे सिक्के हासिल कर सकते हैं, जिनकी अपनी एंटीक वैल्यू है। दरीबा कलां और कूचा महाजनी के बुलियन डीलरों के अलावा चांदनी चौक में करीब दो दर्जन वेंडर पटरियों पर एंटीक सिक्के बेचते मिल जाएंगे। वर्षों से फटे-पुराने नोटों को बदलने का काम करने वाले इन वेंडर्स के पास हजारों ऐसे सिक्के हैं, जिनकी तारीख मुगलकाल से भी पहले तक जाती है। मराठों से लेकर राजपूत राजाओं की ओर से समय-समय पर चलाए गए सिक्के भी हैं। इनकी वास्तविक पहचान के लिए आपका इतिहास और पुरातत्व से वाकिफ होना जरूरी है, वरना यह असंगठित बाजार कौड़ियों को भी सोने के भाव बेचने का हुनर जानता है।

लालकिले से फतेहपुरी की ओर जाती सड़क के दाईं ओर करीब तीस साल से पुराने सिक्के बेच रहे सत्यनारायण शर्मा के पास अंग्रेजी गिन्नी और मुगल अशर्फियों के अलावा पिछली दो सदी के पैसा, आना, कौड़ी, पाई, धेले हैं, जिन्हें वह 100 से 500 रुपये तक में बेचते हैं। वह बताते हैं, ‘हमारे पास सोने की अशर्फियां और मुगलकालीन सिक्के भी हैं, जिन्हें हम बाजार में नहीं लाते। अगर कोई ग्राहक दिलचस्पी दिखाए तो उसे लेकर घर जाते हैं और वहीं मोलभाव होता है। वह चाहे तो किसी जौहरी या जानकार की मदद ले सकता है।’ उन्होंने बताया कि सोने की कई गिन्नियां उन्होंने दस से बीस हजार रुपये में बेची हैं। सिक्कों को उन पर दर्ज शासकों के नाम और तारीख से पहचाना जा सकता है। ज्यादातर मुगल सिक्कों पर जहां फारसी में नाम लिखे हैं, वहीं कुछ सिक्कों पर मध्यकालीन देसी लिपियां भी देखी जा सकती हैं।

चावड़ी बाजार के एक वेंडर सोहनलाल बताते हैं, ‘बेशकीमती धातु के नाम पर हमारे पास ज्यादा से ज्यादा चांदी के ही सिक्के मिलेंगे। पुराने सिक्के हमें आम लोगों से ही मिले हैं। घरों में वर्षों से पड़े सिक्कों को हम उनके मूल्य से ज्यादा दाम देते हैं। जिनके लिए ये स्क्रैप हैं, वे बेच जाते हैं। एंटीक सोने के सिक्कों की खरीद-फरोख्त जूलर करते हैं। सोने की मौजूदा कीमत के बाद वे उनके ऐतिहासिक महत्व के नाम पर कितना कमा सकते हैं, यह मोलभाव पर निर्भर करता है।’ वह बताते हैं कि ज्यादातर ब्रिटिशकालीन सिक्के विदेशी टूरिस्ट खरीदते हैं और मुंहमांगा दाम भी देते हैं। पिछले महीने उन्होंने जॉर्ज पंचम के जमाने का एक सिक्का 3000 रुपये में बेचा।

जामा मस्जिद के पास पुराने सिक्कों और बेशकीमती पत्थरों के वेंडर नईम अपने पास शाहजहां और शाह आलम तक के सिक्के होने की बात करते हैं, लेकिन दिखाने से इनकार करते हैं। वह कहते हैं, ‘अब ज्यादातर ग्राहक देखते हैं और फोटो खींचकर चलते बनते हैं। कोई उन पर ज्यादा पैसे खर्च नहीं करना चाहता।’ इन वेंडर्स की कमाई का मुख्य जरिया अब भी पुराने नोटों का कमिशन ही है। बुरी तरह से खराब हो चुके सौ रुपये के एक नोट को यहां से 50 से 60 रुपये तक ही मिलेंगे। ये वेंडर स्थानीय एजेंट को 10 रुपये प्रति नोट देकर उन्हें आरबीआई या बैंक से बदलवा लेते हैं। इनके पास आजकल के कुछ अजीबो-गरीब नोट भी मिल जाएंगे। मसलन, एक ही नंबर के दो नोट या एक ही सीरीज के नोटों में प्रिटिंग की कई खामियां।

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