‘आपसी सुलह के नाम पर होता रहा नाटक’, मुद्दई इकबाल बोले- किसी ने नहीं किए अटल बिहारी जितने प्रयास

फैजाबाद
राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले की सुनवाई 14 मार्च तक टाल दी गई। सुनवाई टल जाने पर अयोध्या मे संतों और मंदिर-मस्जिद विवाद के पक्षकारों में मायूसी दिखी। सभी ने जोर देकर कहा कि पहले ही बहुत देर हो चुकी है अब कोर्ट जल्द सुनवाई करके फैसला सुनाए। जहां मुस्लिम पक्षकारों ने आपसी सुलह से मामले को सुलझाने में हुए प्रयासों को नाटक बताया वहीं बाबरी मस्जिद मुद्दई इकबाल अंसारी ने कहा कि पहले के राजनेताओं जितने प्रयास किसी ने भी नहीं किए हैं।

राम जन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने वीएचपी मीडिया सेंटर के हवाले से कहा, ‘हम न्यायालय का सम्मान करते हैं लेकिन काफी वक्त गुजर चुका है। अब हिन्दू समाज की हिम्मत जवाब दे रही है। नियमित सुनवाई मे रुकावट से मंदिर निर्माण मे बाधक बने संगठनों को बल मिलेगा।’ उन्होंने कहा कि केंद्र में पीएम मोदी के रहते इसका समाधान होना चाहिए। यही नहीं, वीएचपी केंद्रीय सलाहकार सदस्य पुरूषोत्तम नारायण सिंह ने कहा, ‘हिन्दू समाज को बड़ी आशा थी कि सर्वोच्च न्यायालय 8 फरवरी से नियमित सुनवाई करेगा लेकिन अफसोस हुआ क्योंकि सुनवाई फिर 14 मार्च तक टल गई। फैजाबाद के स्थानीय अदालत से चला मामला 67 वर्ष बीत जाने पर भी न्यायायिक प्रक्रिया मे उलझा हुआ है।

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‘खत्म होना चाहिए 500 वर्षों का इंतजार’
केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल सदस्य महंत कन्हैया दास ने कहा कि हिंदुओं की सामूहिक इच्छाओं की पूर्ति होगी। रामलला अपने भव्य मंदिर मे अवश्य विराजमान होंगे। न्यायालय की सुनवाई की तारीख बढ़ाने पर अफसोस जताते हुए उन्होंने कहा कि 500 वर्षों का इंतजार अब खत्म होना चाहिए। वीएचपी प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा, ‘एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय मे मुस्लिम पक्ष अवरोधक बना और न्यायायिक प्रक्रिया मे विलंब कराने के लिए अलग-अलग रास्ते खोजता रहा। मुस्लिम पक्षकार इसमे अवरोध डालते रहेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि उनके पास कोई तथ्य नहीं है।’

जानिए, क्या बोले बाबरी मस्जिद मुद्दई इकबाल अंसारी
इस पूरे मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने कोर्ट के फैसले को अंतिम हल माना है। इसके साथ ही उन्होंने एक साल के बीच कोर्ट के निर्देश पर आपसी सुलह से मामले को सुलझाने में किए गए प्रयासों को केवल नाटक बताया है। बाबरी मस्जिद के मुद्दई मो. इकबाल अंसारी ने कहा, ‘श्री श्री रविशंकर से लेकर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि तक अयोध्या इसी सिलसिले में आए पर सार्थक बात मिल बैठ कर किसी ने नहीं की। मुस्लिम नेता और शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी तो अपना अजेंडा तय करके ही आए और केवल मुस्लिम पक्षकारों से मुहर लगवाना चाहते थे, जिसे नकार दिया गया। अब केवल सुप्रीम कोर्ट ही इस मामले का फैसला कर सकता है जो दोनों पक्षों को मानना होगा।’

‘पहले के राजनेताओं जितने नहीं किए गए प्रयास’
इकबाल अंसारी ने कहा, ‘वास्तव मंदिर के पक्षकार ही मामले का हल नहीं चाहते और अपनी जिद पर अडे़ रहे। सरकार भी इसका हल नहीं निकालना चाहती इसीलिए दिल्ली और प्रदेश की सरकारों ने दोनो पक्षों को बैठाकर मामले का सर्वमान्य हल खोजने की कोई पहल नहीं की। इससे पहले के राजनेताओं चन्द्रशेखर, वीपी सिंह और अटल बिहारी वाजपेयी के जितना भी प्रयास नहीं किया गया।’

‘सुप्रीम कोर्ट से ही निकल सकता है हल’
दूसरे पक्षकार हाजी महबूब की भी राय है कि सुप्रीम कोर्ट ही इसका सही हल निकाल सकता है, जिसे सभी को मानना होगा। आपसी सुलह से हल करने की सबसे बड़ी अड़चन यही थी कि इसका नेतृत्व कौन करे, जिसकी बात पर दोनों पक्ष राजी हों। यह मामला इसीलिए सार्थक हल तक नही पहुंचा। उन्होंने कहा कि कोर्ट को जल्द फैसला सुनाने की कोशिश करनी चाहिए।

‘आपसी बातचीत से हल निकालने की कोशिश’
निर्मोही अखाड़े के महंत और मंदिर के पक्षकार दिनेंद्र दास का कहना है कि आपसी सुलह से विवाद का हल निकालने का प्रयास अभी भी चल रहा है। निर्मोही अखाड़ा के पंचों ने तय कर लिया है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड यदि विवादित परिसर से अपने हिस्से की जमीन को छोड़ दें तो अखाड़ा की अविवादित जमीन विद्याकुंड के पास उन्हें दे दी जाएगी। हालांकि, राम मंदिर का निर्माण अब जल्द होना चाहिए।

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