अश्लील ऐड से दिक्कत, तो पुलिस के पास जाइए: सरकार

नई दिल्ली

केंद्र ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कॉन्डम से जुड़े अश्लील ऐड से आहत लोग पुलिस के पास जाकर शिकायत कर सकते हैं। इस तरह केंद्र ने इस मसले को राज्य सरकार के पास ट्रांसफर कर दिया है, जो पुलिस और लॉ ऐंड ऑर्डर की समस्या से निपटती है। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने कोर्ट नोटिस के जवाब में दायर हलफनामे में कहा कि ‘निरोध और ‘डीलक्स निरोध’ जैसे सरकार के अपने कॉन्डम की मार्केटिंग हेल्थ मिनिस्ट्री की कमिटी की निगरानी में की जाती है, ताकि वे भद्दे या अश्लील ना लगें। सरकार का यह भी कहना था कि सीबीएफसी जैसी वैधानिक संस्थाएं ‘खराब और अश्लील’ कॉन्टेंट की चेकिंग के लिए स्क्रीनिंग से पहले फिल्मों और ऐड को देखती हैं। हालांकि, सरकार ने माना कि टीवी या केबल या प्रिंट में अन्य प्रसारण में प्री-सेंसरशिप नहीं है। जिन ऐड्स की प्री-स्क्रीनिंग होती है, उनमें सिगरेट, तंबाकू और ऐल्कॉहॉल शामिल हैं। बाकी सभी ऐड्स चाहे प्रिंट हो या टीवी, सभी वॉलंटरी कोड ऑफ कंडक्ट यानी खुद से रेग्युलेशन के दायरे में हैं। सरकार के मुताबिक, केबल टीवी नेटवर्क से जुड़े ऐड नियमों के उल्लंघन के मामले को ट्राई और एएससीआई देखते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में मद्रास हाई कोर्ट के 2008 के उस ऑर्डर को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हो रही है, जिसमें हिंदुस्तान लेटेक्स जैसी कॉन्डम बनाने वाली कंपनियों को विज्ञापनों से उत्तेजक तस्वीरों को अलग रखने को कहा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2008 की आखिरी छमाही में इस ऑर्डर पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ऑर्डर के पहले लिखित जवाब में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने कहा कि इस तरह के ऐड सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952, सिनेमैटोग्राफ (सर्टिफिकेशन) रूल्स 1983, केबल टेलिविजन (रेगुलेशन) एक्ट 1995 के तहत जारी गाइडलाइंस और प्रेस काउंसिल ऐक्ट 1978 के दायरे में आते हैं। अदालत ने सरकार से पूछा था कि क्या वह इस तरह के ऐड के मामलों को देखेगी।

हालांकि, सरकार ने माना कि प्रिंट मीडिया (अखबार, मैग्जीन और जर्नल) में ऐड को लेकर कोई लीगल रेग्युलेटरी मेकेनिजम नहीं है और ऐसे ऐड के मामले में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की तरफ से तय वॉलेंटरी एथिक्स कोड का ही पालन करने की बात है। मिनिस्ट्री ने माना कि जहां तक टीवी और केबल पर ऐड की बात है, तो सिगरेट, तंबाकू और ऐल्कॉहॉल को छोड़कर सैटेलाइट टीवी चैनलों पर प्रसारित कॉन्टेंट के लिए प्री-सेंसरशिप या सर्टिफिकेशन ऑफ कॉन्टेंट मुहैया कराने के लिए कोई प्रावधान नहीं है। सरकार ने अदालत को बताया कि ट्राई ब्रॉडकास्टिंग सेक्टर के लिए रेग्युलेटर की तरह काम करता है और चैनलों को केबल टेलिविजन नेटवर्क नियम, 1994 के तहत प्रोग्राम ऐंड ऐडवरटाइजमेंट कोड का पालन करना पड़ता है। इस कोड के तहत महिलाओं की अपमानजनक इमेज का इस्तेमाल करने से बचना जरूरी है।

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