अब खत्म हो गए सरकारी बैंकों के बुरे दिन?

नरेंद्र नाथन, नई दिल्ली
करीब-करीब सभी सरकारी बैंकों को हुए बड़े घाटों की वजह से बैंकिंग सेक्टर वित्त वर्ष 2017-18 को शायद ही कभी भूल पाए। इस वित्त वर्ष में सरकारी बैंकों की ओर से कुल 85,168 करोड़ रुपये का घाटा दर्ज किया गया जो पिछले कुछ वर्षों में सबको हुए लाभ की रकम से भी ज्यादा है। इस दौरान निजी क्षेत्र के बैंक भी दबाव में दिखे। मसलन, ऐक्सिस बैंक को चौथी तिमाही में 2,189 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा हुआ जिसने पिछली तीन तिमाहियों में हुए उसके लाभ को चौपट कर दिया। लक्ष्मी विलास बैंक जैसे कुछ छोटे बैंकों को भी नुकसान उठाना पड़ा है। इस वजह से वित्त वर्ष 2017-18 में प्राइवेट सेक्टर के बैंकों का शुद्ध लाभ वित्त वर्ष 2016-17 के मुकाबले 6 प्रतिशत घट गया।

बावजूद इसके शेयर बाजार ने इस पर नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि बाजार को लग रहा है कि बैंकों के बुरे दिन अब खत्म हो गए हैं। तो क्या सच में बैंकों को बुरे दिनों से मुक्ति मिल गई है? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि ‘अभी और बुरे दिन आनेवाले हैं’ का जुमला पिछले कुछ वर्षों से लगातार इस्तेमाल हो रहा है। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि कुछ कारणों से यह वक्त थोड़ा अलग है। पहला, जनवरी-मार्च 2018 तिमाही में उन्हीं बैंकों को घाटा हुआ है जो पहले से ही वॉचलिस्ट में थे। एसएमसी ग्लोबल के रिसर्च ऐनालिस्ट सिद्धार्थ पुरोहित ने कहा, ‘चूंकि वॉचलिस्ट वाले बैंकों की संख्या में कमी आई है, इसलिए बैंकिंग सेक्टर के घाटे में भी कटौती की संभावना है।’

दूसरा, बैंकिंग सेक्टर की मौजूदा बदहाली के ज्यादातर कारणों के लिए रिजर्व बैंक को जिम्मेदार ठहाराया जा सकता है। आरबीआई ने अतीत में बैंकों को संदेहास्पद कर्जों की रीस्ट्रक्चरिंग करने की अनुमति दी थी। चूंकि बैंक आरबीआई की इस लापरवाही का फायदा उठाकर नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स (एनपीए) की रकम घटाकर बताते रहे, इसलिए उनका फंसा कर्ज बढ़ता रहा। बाद में आरबीआई को शिकंजा कसना पड़ा। रिलायंस सिक्यॉरिटीज के सीनियर रिसर्च ऐनालिस्ट आशुतोष कुमार मिश्र कहते हैं, ‘आरबीआई की कड़ाई की वजह से बैंकों को सभी फंसे कर्जों की रकम बतानी पड़ रही है। ऐसे में हम कह सकते हैं कि एनपीए के उजागर होने के नजरिए से तो बुरे दिन अभी पीछा कर ही रहे हैं।’

आनेवाले वर्षों में इन बैंकों को प्रविजनिंग करनी पड़ेगी…

इन्सॉल्वंसी ऐंड बैंकरप्ट्सी कोड (आईबीसी) में हालिया संशोधन के बाद भी बैंकों को फंसे कर्जों की प्रविजनिंग करने पर मजबूर किया है। क्रिसिल रेटिंग्स के सीनियर डायरेक्टर कृष्णन सीतारमण ने कहा, ‘संशोधन से कर्जदाताओं (बैंकों) के हित सुरक्षित होंगे और आईबीसी के तहत समाधान की गति तेज होगी। आईबीसी के सेक्शन 29(ए) में संशोधन से दिवालिया कंपनियों के लिए बोली लगानेवालों की तादाद भी बढ़ जाएगी।’ इसलिए नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) में बैंकरप्ट्सी प्रसीजर के दौरान कुछ समाधान हो पाए तो एनपीए घोषित किए जा चुके कुछ खाते साफ-सुथरे हो सकते हैं।

हालांकि, निवेशकों को अभी यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि बैंक अब बड़े मुनाफे में आ जाएंगे। ऐसा इसलिए क्योंकि बैंकों को अब भी एनपीएज की प्रविजनिंग करनी होगी। एसएमसी ग्लोबल के पुरोहित ने कहा, ‘बैंकों को अगली दो तिमाहियों में प्रविजनिंग करनी होगी। ऐसे में सितंबर के बाद ही बैंकों के कर्ज सस्ते हो पाएंगे।’

फंसे कर्जों की पहचान के लिहाज से बुरे दिन तो लद गए, लेकिन मुनाफे का मसला अब भी चिंताजनक है। हालांकि, घाटे के लिहाज से जनवरी-मार्च 2018 का वक्त लौटने की आशंका नहीं के बराबर है। ऐनालिस्ट्स सरकारी बैंकों के वैल्युएशन बढ़ने से भी काफी उत्साहित हैं। पुरोहित का कहना है, ‘सरकारी बैंकों एवं कॉर्पोरेट घरानों को कर्ज देनेवाले निजी क्षेत्र के बैंकों के वैल्युएशन में बड़ी बढ़त से उनमें निवेश करने की गुंजाइश बढ़ गई है।’

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